________________
आचार्यश्री की प्रमुख विशेषता है प्राणी मात्र के प्रति समभाव और सहृदयता। वे संत हैं, तुलसी ने लिखा है 'संत हृदय नवनीत समाना' नवनीत का गुण यही है कि वह स्वयं तो कोमल, स्निग्ध और शीतल है ही बाहर का जरा सा ताप मिलते ही द्रवित भी हो जाता है, इसी तरह आचार्य श्री भी सांसारिक दुःख से दुःखी प्राणियों को देखकर उनके कल्याण के लिए द्रवित हो जाते हैं। विचारों की उर्जस्वित धारा, पवित्र चिन्तन और दृढ़ संकल्प के साथ गुरुवर ने भारत के विभिन्न प्रान्तों को अपनी चरण रज से पवित्र किया है।
जिनवाणी के प्रति आपका अनुराग अनन्य है आपकी प्रेरणा से नगर नगर में आगम संरक्षण एवं जिनवाणी जीर्णोद्धार हुआ है आपकी प्रेरणा से आचार्य श्री सूर्यसागर जी द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'संयम प्रकाश' के चार भाग तथा 'श्रावकधर्म', लघु पद्मपुराण, जैनधर्म की प्राचीनता, भक्तामर स्तोत्र, आत्मप्रबोध आदि ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं, प्रश्नोत्तरी, श्रद्धापुष्प और जैन गणित आपकी स्वतन्त्र रचनाएं हैं।
वर्तमान में आचार्य श्री ने द्वादश वर्षीय सल्लेखना धारण की हुई है सात वर्ष शेष हैं। जिसके उत्तरोत्तर तप त्याग में वृद्धि करते हुए सम्प्रति वे श्रमणधर्म को गौरवान्वित कर रहे हैं। आचार्य श्री के संघ के सभी त्यागी निर्दोष तपश्चर्या का पालन करते हैं। पूरे संघ का चारित्र हमारे लिए अनुकरणीय है।
मूलोत्तर गुणनिष्ठ दृढ़ चारित्र पालक, महान् साधक, दिगम्बर सन्त पूज्य आचार्यश्री का चिरकाल तक ज्ञानपिपासुओं को ज्ञानामृत का लाभ मिलता रहे ऐसी हम भावना करते हैं।
xili