Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 14
________________ की धू-धू करती ज्वालाएं शांत हो सकें। उनके अन्तरंग में एक संवेदनशील हृदय धड़कता है जिसमें करुणा का सागर हिलोरे लेता है, इसलिए तो क्षुल्लक बनकर भी वे संतुष्ट नहीं हुए और सम्पूर्णता के लिए प्रयत्नशील रहे। लंगोटी और चादर भी परिग्रह है, बोझ है, भार है यह समझकर एक दिन श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (हस्तिनापुर वालों) से गन्नौर मण्डी, जिला सोनीपत (हरियाणा) में चैत्र वदी 15 सम्वत् 2051 (10 अप्रैल सन् 1994) को लंगोटी के भार से भी निर्भर होकर बन गए पूज्य मुनि 108 श्री धर्मभूषण जी महाराज और समृद्ध कर दी वह पुनीत पावन परम्परा जिसके संवाहक श्रमणरत्न संतशिरोमणि चारित्र रत्नाकर 108 श्री शांतिसागर जी " छाणी" आचार्य श्री सूर्यसागर जी. आचार्य श्री जयसागर जी और आचार्य श्री शांतिसागर जी (हस्तिनापुर) महाराज हैं। उर्जस्वित, पवित्र और प्राणवंत होती इस सशक्त विरासत के ही उत्तराधिकारी पट्ट शिष्य हैं श्री आचार्य 108 श्री धर्मभूषण जी । मुनिदीक्षा के समय इस भव्यात्मा के धर्मपिता और माता बनने का सौभाग्य मिला श्री मूलचन्द जी जैन मेरठ एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरला देवी को । पूज्य मुनि श्री की साधना अनवरत चलती रही और मुजफ्फरनगर (उ० प्र०) में ज्येष्ठ सुदी 3 सम्वत् 2054 (8 जून 1997) को उन्हें आचार्य पद प्रदान किया गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गौरव प्रथम आचार्य श्री धर्मभूषण जी सम्पूर्ण भारत में आज अपनी कठोर तपश्चर्या और सैद्धान्तिकता के कारण विख्यात हैं। वस्तुतः श्रमणत्व पूज्य आचार्यश्री से धन्य हुआ है। आपके द्वारा 108 मुनि श्री ज्ञानभूषण जी को 8 जून 1997, मुजफ्फरनगर में 108 मुनि श्री सम्यक्त्वभूषण जी को 10 मार्च 2000, मेरठ में 108 मुनि श्री चारित्रभूषण जी को 10 मार्च 2000, मेरठ में मुनि दीक्षा प्रदान की गई। आपकी पावन प्रेरणा से श्रीमति गुणमाला जैन (अम्बाला), श्रीमति कमला जैन (रामपुर मनिहारन ) सातवीं प्रतिमा के व्रत स्वीकार कर चुकी हैं तथा श्री कैलाश चन्द्र एवं रिपुदमन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर संयम मार्ग पर अग्रसर हैं। श्री शिखर चन्द्र जैन ने आपसे ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया और अब मुनि नियमभूषण जी बनकर आपके ही संघ में विराजमान हैं। आपके द्वारा और भी अनेक गृहस्थ अपने जीवन को संयम मार्ग पर लगा रहे हैं। चातुर्मास क्षुल्लक अवस्था में आपके चातुर्मास सन् 1981 में अम्बाला छावनी, सन् 1982 में गोहाना (हरियाणा), सन् 1983 में गन्नौर मण्डी (हरियाणा), सन् 1984 में छपरौली (मेरठ), सन् 1985 में ग्राम बावली (मेरठ), सन् 1986 में काँधला (मुजफ्फरनगर) सन् 1987 में कैलाशनगर, (दिल्ली), सन् 1988 में सोनीपत (हरियाणा), सन् 1989 में हाँसी (हरियाणा), सन् 1990 में छपरौली (मेरठ), सन् 1991 में अम्बाला छावनी, सन् 1992 में रामपुर मनिहारन ( सहारनपुर), सन् 1993 में कैराना (मुजफ्फरनगर) में हुए। मुनि अवस्था में सन् 1994 में कैलाशनगर (दिल्ली), सन् 1995 में अशोक नगर (दिल्ली), सन् 1996 में रामपुर मनिहारन (सहारनपुर), सन् 1997 में कैराना (मुजफ्फरनगर), सन् 1998 में गाजियाबाद, सन् 1999 में गन्नौरमण्डी (हरियाणा), सन् 2000 में सरधना नगर, सन् 2001 में रामपुर मनिहारन ( सहारनपुर) तथा सन् 2002 में गाजियाबाद नगर आपके चातुर्मास सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। xil

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