Book Title: Jain Darshan Chintan Anuchintan
Author(s): Ramjee Singh
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 147
________________ विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय विज्ञान और अध्यात्म के विषय में सामान्य मनोभाव यही है कि विज्ञान के द्वारा हमें बाह्य जगत् का और अध्यात्म के द्वारा अन्तर्जगत् का ज्ञान प्राप्त होता है । लेकिन विज्ञान की सम्यक दृष्टि तो यही है कि 'विज्ञान' का अर्थ है "विशिष्ट ज्ञान', इसलिये इसमें बाह्य जगत् एवं अन्तर्जगत् दोनों का ज्ञान अभिनिहित है । असल में मूल में है 'वैज्ञानिक -दृष्टि', जिसमें हम सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अवगाहन एवं दोहन करते हैं । विज्ञान ने बाह्य जगत के रहस्यों के भेदन में जितना समय और शक्ति दी है, उतना अन्तस्तत्त्व की खोज में नहीं दिया है। यही कारण है कि मानव-प्रकृति का बहुलांश अभी भी गहन अन्धकार में है। शायद विज्ञान अपने उत्कर्ष की चकाचौंध में यह भूल गया था कि मानव कार्य-सिद्धि के लिये भले ही अनेकों उपयुक्त साधनों की खोज करता रहा है लेकिन एक भी साधन स्वयं मनुष्य के समान नहीं है। मानवतुल्यं नैकमपि साधनम् । मानव परम पुरुषार्थ है। यूनानी दार्शनिक प्रोटागोरस ने तो कहा ही था---Man is the measure of all things. व्यास ने भी कहा -“न हि श्रेष्ठतरं किंचित् मानुषात् ।" टिलहार्ड (The Phenomenon of Man), हक्सले (Man in the Modern World), एलक्सिस कैरल (Man the Unknowing), युंग (Modern Man in Search of Soul) एवं मार्क्स आदि आधुनिक विद्वानों ने मानव की भूमिका और महत्त्व अवगाहन करने पर अत्यधिक जोर दिया है। फिर भी हम विज्ञान-विरुद्ध नहीं हो सकते । जो विज्ञान-विरुद्ध है, वह ज्ञान नहीं, अज्ञान और अन्धविश्वास है । जो विज्ञान-विरुद्ध है, वह तर्क-विरुद्ध है और तर्कविरुद्ध हम हो नहीं सकते। जो तर्क नहीं करता है, वह अन्धविश्वास और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ है, जो तर्क नहीं कर सकता है वह मूर्ख है और जो तर्क करने का साहस नहीं करता वह दास-वृत्ति का व्यक्ति है । इसीलिये जो विज्ञान या तर्क-विरुद्ध है, उसके लिये कहीं कोई अवसर नहीं है। वह असत्य एवं भ्रम है। किन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं जो तर्क-विरुद्ध नहीं हैं लेकिन तर्क से परे हैं। इसलिये जो तर्क से परे है, वह न तो विज्ञान-विरुद्ध है न तर्कविरुद्ध । इसी तरह जो विज्ञान से परे है, वह तर्क-विरुद्ध या ज्ञान-विरुद्ध नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यह है कि विज्ञान एवं तर्क की उपयोगिता एवं महत्त्व के प्रति आस्था और विश्वास स्वयं विज्ञान एवं तर्क से ऊपर है। सभी बातें तर्काधारित होनी चाहिये। सभी विज्ञान सम्मत होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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