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जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन अनेकांत है। गांधी ने अनेकांत की आत्मा को पहचाना और जीवन के हर क्षेत्र में समन्वय की विराट् चेष्टा की। पंजीवाद और समाजवाद या यों कहें परिग्रह और अपरिग्रहवाद का समन्वय उन्होंने अपने ट्रस्टिशिप के सिद्धांत में जिस कौशल से किया, वह अपूर्व है । झगड़ा अमीर से नहीं, उसकी अमीरी से है । यदि वह भामाशाह एव सेठ जमनालाल बजाज की तरह उसे जनता का धरोहर मानता है तो अपनी अपूर्व बुद्धि का समाज को लाभ देता है तो इसमें क्या हर्ज है । सार्वजनिक क्षेत्रों में जो उद्योग चले आज अनाथ बच्चे की तरह उपेक्षित और अनादत हैं क्योंकि उसे कोई अपना नहीं समझता । राजनीति में भी उन्होंने राज्य-शक्ति के साथ जन-शक्ति को जोड़ने का संदेश दिया। धर्म के क्षेत्र में सर्व-धर्म समभाव तो अनेकांत का व्यावहारिक पाठ है । भाषा के क्षेत्र में भी उन्होंने मिली-जुली हिन्दुस्तानी की जो वकालत की आज.वह मानली जाती तो संस्कृत निष्ठ हिन्दी के बोझिल स्वरूप से न दक्षिण वाले कतराते न उर्दू वाले द्वितीय राजभाषा की मांग करते । संक्षेप में गांधी ने अपने जीवन में अनेकांत को उतारा। हां, उन्होंने बराबर विनम्रतावश कहा कि उनका अनेकांत स्यादवाद विद्वानों का नहीं, एक सामान्य जनता का है । उनकी इस युक्ति में एक ओर उनकी विनम्रता की पराकाष्ठा है दूसरी ओर साम्प्रदायिक वृत्ति से वाद-विजय और भंगजाल का ही अनेकांत मानने पर छिपा हुआ व्यंग ।
महावीर ने पंच महाव्रतों के साथ अणुव्रतों के उपदेश दिये। गांधी नित्य प्रति ऐकादशवत की प्रार्थना ही नहीं साधना करते रहे । महावीर ने सत्य को धर्म का मूल माना, गांधी का सम्पूर्ण जीवन ही "सत्य के साथ प्रयोग" है। महावीर ने अहिंसा को परम धर्म बताया, गांधी का सम्पूर्ण जीवन उनकी समाज-साधना, उनका सत्याग्रह उनके आर्थिक राजनैतिक अभियान अहिंसा पर आधारित हैं। भगवान महावीर ने अहिंसा को व्यक्तिगत जीवन में सूक्ष्मता पूर्वक लाने पर जितना जोर दिया, उतना पहले और बाद में भी किसी ने नहीं दिया । अहिंसा को संगठित कर इसे सामूहिक जीवन में दाखिल कर दिया-यह है गांधी का अनोखा आविष्कार। महावीर ने ब्रह्मचर्य को अध्यात्म के लिए सर्वोपरी माना, गांधी ने उसे गृहस्थ जीवन में अपना कर सर्व सुलभ बना दिया । ब्रह्मचर्य की साधना लिए समाज का परित्याग आवश्यक नहीं, वह तो गार्हस्थ्य जीवन में भी साधा जा सकता है। भगवान् महावीर ने निर्वस्त्र होकर अपरिग्रह का आत्यन्तिक पदार्थ पाठ दिया. गांधी ने अर्द्धनग्न रहकर भारत की दुःखी जनता के साथ आत्मीयता प्राप्त की, अपरिग्रह तो साधा ही । यही कारण है कि मैं गांधी को वर्तमान युग का महावीर मानता हूं। अपनी आत्म कथा के अन्तिम वाक्य में गाँधी ने जो लिखा है, उससे स्पष्ट होता है कि गांधी वैष्णव कुल में जैन होकर पैदा हुए और ३० जनवरी को महावीर अहिंसा का प्रचार करते हुए शहीद हुए !
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