Book Title: Jain Darshan Chintan Anuchintan
Author(s): Ramjee Singh
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 190
________________ परिशिष्ट १५१ अतिव्याप्त-३४ अमर मुनि ---३६ अगस्त्य सिंह-३६ अपूर्व-३७ अनेकान्तिक-४२,४२,४४,४५ अगति-४४ अवक्तव्य-४९ अक्रियावादी-४९ अव्याकृत-४९,५० अनेकांतवाद-५० अकृतागम-५० अन्नतगुणात्मक-५४ अविनाभावी-५५ अमृतचन्द्र-५५ अनवस्थादोष-५८ अनवधारणात्मक-५८ अनन्तदर्शन-६० अनन्त वीर्य ६० अनन्तसुख-६० अपरोक्षानुभूति-६१ अमूर्त-६३,९३ अनुज्ञा-~८१ अपरिग्रह-८१ अतिचार-८१ अस्तेय-८२ अनासक्ति-८४ अहिंसा-९३ अप्रमाद-९५ अर्थशास्त्र--११३ अनामय-११५ अरबिन्द–११६,१४५ अवतार-१३० अनन्तधर्मात्मक-१३७ अन्तरात्मा-१५५ आदर्शवाद-३ आप्टे-६ आत्मा -८,१५,१९,४९ आत्मज्ञ-८ आगम-९,४४ आप्तमीमांसा-३१ आस्तिक-७२ आश्रव-८० आइन्स्टीन-४२ आचारांग--५०,१३१ आयारो-९२ आभास-११३ आनुवांशिक-११३ आखेटयुग-११४ आयकरोड-११९ आदमस्मिथ–१२० आर्य--१२९ आरण्यक-१२९ आत्मौपम्य-१३१ आर्थर जी मदान-१,३ इस्लाम-~-९७,१६४ ईक्षणी विद्या--२१ ईसाई --- ९७,१६४ उपनिषद्-८,२६ उद्योतकर-३४ उच्छेदवाद-४८ उपयोग-६२ उपभोक्तावाद-८ उपशांति-९४ उपस्कर-१६५ एकलक्षण-२९ एकसरकार-९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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