Book Title: Jain Darshan Chintan Anuchintan
Author(s): Ramjee Singh
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय "1 के अन्तर्गत पूरकता का सिद्धांत ( Principle of complementarity) प्रस्तुत किया है जिसे जापानी पदार्थ - वैज्ञानिक यूकाबा ने समर्थन करते हुए कहा है कि जापान में हम अरस्तु के निरपेक्ष तर्कशास्त्र से प्रभावित नहीं हैं । श्री अरविन्द ने तो इसे और भी स्पष्ट किया कि " अन्तस्तत्त्व का ही एक रूप मैटर है ।" लाइफ डिवाइन, भाग - २ पृ० ४५३ ) श्री मां ने इसीलिये दर्द से कहा है - जिसे ईश्वर ने मिलाया, एक किया है, क्यों उसे मनुष्य अलग करना चाहता है ।" बट्रेंड रसेल के अनुसार " मानस और मैटर का अन्तर काल्पनिक है ।' क्वान्टम मेकानिक्स (Quantum Mechanics) के विज्ञाता पी. ए. एम. डिराक ने कहा है “प्रकृति के आधारभूत सिद्धांत भी जगत् को उतने परिचालित नहीं करते हैं जितना वे दीखते हैं ।" अध्यात्म की भाषा में जड़-चेतन के इसी अद्वैत को "सर्वं खलु इदं ब्रह्म", "ईशावास्यमिदं सर्वं " या "सीयराममय सब जगजानी" आदि उक्तियों से स्पष्ट किया गया है । जब सब कुछ 'ब्रह्म' या 'ईश्वर' है तो फिर चित्-अचित्, जड़-चेतन का भेद ही क्या होगा ? जेम्स जीन्स (Mysterious Universe), एडिंगटन आदि समकालीन वैज्ञानिक विज्ञान में प्रत्ययवादी प्रवृत्तियों का समावेश देखते हैं । एक दूसरी दृष्टि से भी विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय देखा जा सकता है । विज्ञान सृष्टि के नियमों का अनुसंधान करता है और कहता है कि प्रकृति अपने नियमों से आबद्ध है । बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता है । इसी को अध्यात्म 'ऋत' या "धर्म" की संज्ञा देता है। बिना नियम के ईश्वर भी कोई कार्य नहीं करते -- "ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोध्यजायत् ।” विज्ञान को यदि उसके मौलिक अर्थ "ज्ञान" के अर्थ में समझें तो बाह्य जगत् का और मानव-स्वभाव ( अन्तर्गत् ) का ज्ञान दोनों का समावेश है । विज्ञान की अडिग गवेषणा और वैज्ञानिक वृत्ति या वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो, जिसमें मानव - प्रकृति का अध्ययन भी शामिल हो, तो मानवता का संकट दूर हो सकता है । आज अध्यात्म की वैज्ञानिक खोज की आवश्यकता है । चित्त-संशोधन (Psychic Research) भले ही अध्यात्म-तत्त्व के अन्वेषणों में एक गवाक्ष का काम करे किन्तु विनोबाजी इसे आध्यात्मिक नहीं मानते । वह साइन्स ही है । चित्त भी मैटर (द्रव्य) के अन्तर्गत है किन्तु आत्म-तत्त्व उससे भिन्न है । अतः चित्त-संशोधन आत्मज्ञान नहीं माना जायेगा । इसी तरह अध्यात्म में प्रेतविद्या ( Spiritism ) का भी समन्वय नहीं होना चाहिए । जिस चीज का भला या बुरा उपयोग हो सकता है, वह अध्यात्म नहीं है । वह तो भौतिक विश्व का एक हिस्सा है। चैतसिक शक्ति (Psychic Powers ) या प्रेत शक्ति (Spiritism ) का सदुपयोग या दुरुपयोग दोनों हो सकता है अतः वे भौतिक शक्तियां हैं । असल में अध्यात्म मूलभूत श्रद्धा है और उसकी कुछ निष्ठाएं हैं । सर्व Jain Education International १४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200