Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 10
________________ अपनी बात सहायता मिलती रहती है । उनमें संस्थाके उपाध्यक्ष श्रीमान् पं० जगन्मोह्नलालजी शास्त्री मुख्य हैं । पण्डितजी संस्थाकी प्रगति और कार्यविधिकी ओर पूरा ध्यान रखते हैं और आने वाली समस्याओं को सुलझाते रहते हैं । अतएव हम उन सबके विशेष आभारी हैं । श्री ग० वर्णी जैन ग्रन्थमालाकी अन्य प्रवृत्तियोंमें जैनसाहित्यके इतिहासका निर्माण कराना मुख्य कार्य है। अबतक इस दिशा में बहुत कुछ अंश में प्रारम्भिक कार्य पूर्ति हो गई है और लेखन कार्य प्रारम्भ हो गया है। अब धीरे-धीरे अन्य विद्वानोंको कार्य सौंपा जाने लगा है। जो महानुभाव इस कार्य में लगे हुए हैं वे तो धन्यवाद के पात्र हैं ही। साथ ही ग्रन्थमालाको आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास भी है कि उसे इस कार्य में अन्य जिन महानुभावोंका वांछित सहयोग अपेक्षित होगा, वह भी अवश्य मिलेगा । प्रस्तुत पुस्तकको इस त्वरासे मुद्रण करनेमें नया संसार प्रेस के प्रोप्राइटर पं० शिवनारायणजी उपाध्याय तथा कर्मचारियोंने जो परिश्रम किया है उसके लिये उन्हें धन्यवाद देना आवश्यक ही है । अन्तमें प्रस्तुत पुस्तक विषयमें हम इस आशाके साथ इस वक्तव्यको समाप्त करते हैं कि जिस विशाल और अध्ययनपूर्ण दृष्टिकोणसे प्रस्तुत कृतिका निर्माण हुआ है, भारतीय समाज उसको उसी दृष्टिकोणसे अपनायेगी और उसके प्रसारमें सहायक बनेगी । फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री २६/१०/५५ Jain Educationa International निवेदक वंशीधर व्याकरणाचार्य मंत्री, ग० वर्ण जैन ग्रन्थमाला, बनारस For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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