Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ तर्ज (दो हंसो का जोडा बिछुड गयो रे-गंगा जमुना) काया से चेतन निकल गयो रे,पडी रही काया भसम भई रे॥ या काया को खुब खिलाई,तरह तरह का भोजन खिलाया। आखिर तो मल ही उगल रही रे । पडी रही काया भसम भई रे।काया से॥1 या काया को खुब सजाई ,वस्त्र आभुषण से मढाई । __ आखिर तो मिट्टी मे मिल गई रे । पडी रही काया भसम भई रे।।काया से॥2 टेबल कुर्ची पलंग बिछाई,नरम गद्दी चादर ओढाई । आखिर अर्थी पर धर दई रे। पडी रही काया भसम भई रे।काया से॥3 या काया को संग संग साथी ,चेतन का कोई नही साथी। हंस अकेलो उड गयो रे। पडी रही काया भसम भई रे॥काया से ॥4 या काया को सब जग रोता,चेतन की सुधि नही लेता। कौन गती मे भटक रहो रे। पडी रही काया भसम भई रे।काया से ॥5 जब तक श्वासा तब तक आशा , निकली श्वासा हो वनवासा । श्वास श्वास मे भजन करो रे। पडी रही काया भसम भई रे ॥काया से चेतन निकल गयो रे ,पडी रही काया भसम भई रे॥6 29

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78