Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 77
________________ भावना एक मेरी प्रभु स्वीकार लेना (तर्ज- थोडा सा प्यार हुआ है...) भावना एक मेरी प्रभु स्वीकार लेना डूबे ना नाव मेरी – २, इसे तु तार लेना भावना एक मेरी.... शरण हमने लिया है, अर्पण तुम्हे किया है दिल में बसा लिया, ये दिल तुमको दिया है आज आकार खड़ा हूँ - २ मुझे यू तार लेना भावना एक मेरी.... नाथ तुमसा मिला है, ह्रदय का बाग खिला है कर्मो का राज हिला है मुझे सरताज मिला है तुम्हे पाकर खुशी है – २, कोई ना नाथ मेरे भावना एक मेरी. ज्ञान तुमने दिया है, पान उसका किया है आज हर्षित जिया है गम को भुला दिया है भाव की पुष्प माला – २, इसे तुम धार लेना भावना एक मेरी..... प्रभु तुमने दिखाया, भक्ति का भाव जगाया आस लेकर बड़ी, दर्शन तेरा सुहाया जैन ज्ञान आया – २, रटन है दिवस रेना भावना एक मेरी.... 77

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