Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America Author(s): Jain Center of Southern America Publisher: USA Jain Center Southern CaliforniaPage 12
________________ मंगल विधान (हिन्दी) अपवित्र हो या पवित्र, जो णमोकार को ध्याता है । चाहे सुस्थित हो या दुस्थित, पाप मुक्त हो जाता है || १ || हो पवित्र अपवित्र दशा, कैसी भी क्यों नहि हो जन की । परमातम का ध्यान किये, हो अन्तर-बाहर शुचि उनकी ||२|| है अजेय विघ्नों का हर्ता, णमोकार यह मंत्र महा । सब मंगल में प्रथम सुमंगल, श्री जिनवर ने एम कहा || ३ || सब पापों का है क्षयकारक, मंगल में सबसे पहला । नमस्कार या णमोकार यह, मन्त्र जिनागम में पहला ||४|| ग्रह ऐसे परं ब्रह्म-वाचक, अक्षर का ध्यान करूँ । सिद्धचक्र का सद्बीजाक्षर, मन वच - काय प्रणाम करूँ ||५|| कर्म से रहित मुक्ति-लक्ष्मी के घर श्री सिद्ध नमू । सम्यक्त्वादि गुणों से संयुक्त, तिन्हें ध्यान धर कर्म वम् || ६ || जिनवर की भक्ति से होते, विघ्न समूह अन्त जानो । भूत शाकिनी सर्प शांत हो, विप निर्विप होता मानो || ७|| ( यहाँ पुष्पांजलि क्षेपण करें ) जिन सहस्रनाम अर्ध्य (हिन्दी) मैं प्रशस्त मंगल गानों से युक्त जिनालय माँहि यजूं । जल चंदन प्रक्षत प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ्य सर्जां ॥ ॐ ह्रीं श्री भगवज्जिन सहस्रनामेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा | Jain Education International ॐ स्वाध्यायः : परमं तपः For Private & Personal Use Only www.jainelibraylorgPage Navigation
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