Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America
Author(s): Jain Center of Southern America
Publisher: USA Jain Center Southern California
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(७) हे प्रभो ! चरणों में तेरे हे प्रभो ! चरणों में तेरे आ गये । भावना अपनी का फल हम पा गये ।।टेक।। वीतरागी हो तुम्ही सर्वज्ञ हो, सप्त तत्त्वों के तुम्ही मर्मज्ञ हो ।। मुक्ति का मारग तुम्हीं से पा गये । हे प्रभो ! चरणों में... ।।१।। विश्व सारा है झलकता ज्ञान में, किन्तु प्रभुवर लीन हैं निजध्यान में ।। ध्यान में निज-ज्ञान को हम पा गये । हे प्रभो ! चरणों में... ।।२।। तुमने कहा है जगत के सब आत्मा । द्रव्य-दृष्टि से सदा परमात्मा ।। आज निज परमात्मा पद पा गये । हे प्रभो ! चरणों में... ।।३।।
(८) शुद्धात्मा का श्रद्धान होगा... शुद्धात्मा का श्रद्धान होगा निज आत्मा तब भगवान होगा । निज में निज, पर में पर भासक, सम्यग्ज्ञान होगा ।।टेक।। नव तत्त्वों में छिपी हुई जो ज्योति उसे प्रगटायेंगे । पर्यायों से पार त्रिकाली ध्रुव को लक्ष्य बनायेंगे ।। शुद्ध चिदानन्द रसपान होगा, निज आत्मा तब... ।।१।। निज चैतन्य महा-हिमगिरि से परिणति-धन टकरायेंगे । शुद्ध अतीन्द्रिय आनन्दरसमय अमृत-जल बरसायेंगे ।। मोह महामल, प्रक्षाल होगा, निज आत्मा तब...।।२।। आत्मा के उपवन में, रत्नत्रय पुष्प खिलायेंगे । स्वानुभूति की सौरभ से निज नन्दनवन महकायेंगे ।। संयम से सुरभित उद्यान होगा, निज आत्मा तब... ।।३।।
में ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ
- डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण, पर की मुझ में कुछ गन्ध नहीं। मैं अरस अरूपी अस्पर्शी, पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं।। मैं रंगराग से भिन्न, भेद से भी मैं भिन्न निराला हूँ। मैं हूँ अखण्ड चैतन्यपिण्ड, निज रस में रमने वाला हूँ।। मैं ही मेरा कर्ताधर्ता, मुझ में पर का कुछ काम नहीं। मैं मुझ में रहने वाला हूँ, पर में मेरा विश्राम नहीं। मैं शुद्ध, बुद्ध, अविरुद्ध, एक, परपरिणति से अप्रभावी हूँ। आत्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व, मैं ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ।।
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