Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America
Author(s): Jain Center of Southern America
Publisher: USA Jain Center Southern California

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Page 63
________________ (५) ऐसे मुनिवर ऐसे मुनिवर देखे वन में । जाके राग-द्वेष नहि तन में ।। ग्रीष्म ऋतु शिखर के ऊपर, वे तो मगन रहे ध्यानन में ।।१।। चातुरमास तरु तल ठाडे, गुरु बून्द सहें छिन-छिन में ।।२।। शीतमास दरिया के किनारे, मुनि धीरज धरें ध्यानन में ।।३।। ऐसे गुरु को मैं नित ध्याऊँ, देत ढोक सदा चरणन में ।।४।। (१) मंगलाचरण श्री अरहंत सदा मंगलमय मुक्तिमार्ग का करें प्रकाश, मंगलमय श्री सिद्धप्रभू जो निजस्वरुप में करें विलास, शुद्धातम के मंगल साधक साधु पुरुष की सदा शरण हो, धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।। मंगलमय चैतन्यस्वरों में परिणति की मंगलमय लय हो, पुण्य-पाप की दुखमय ज्वाला, निज आश्रय से त्वरित विलय हो । देव-शास्त्र-गुरु को वन्दन कर, मुक्ति वधु का त्वरित वरण हो, धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।। मंगलमय पाँचों कल्याणक मंगलमय जिनका जीवन है, मंगलमय वाणी सुखकारी शाश्वत सुख की भव्य सदन है । मंगलमय सत्धर्म तीर्थ-कर्ता की मुझको सदा शरण हो, धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरणमय मुक्तिमार्ग मंगलदायक है, सर्व पाप मल का क्षय करके शाश्वत सुख का उत्पादक है । मंगल गुण-पर्यायमयी चैतन्यराज की सदा शरण हो, धन्य घड़ी वह धन्य दिवस जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 62

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