Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America Author(s): Jain Center of Southern America Publisher: USA Jain Center Southern CaliforniaPage 35
________________ सहज ज्ञान का ध्रुव प्रवाह फल सदा भोगता चेतनराज । अपनी चित् परिणति में रमता पुण्य-पाप फल का क्या काज ॥ अरे ! मोक्षफल की न कामना शेष रहे अब हे जिनराज । पंच बालयति के चरणों में जीवन सफल हुआ है आज ॥ ॐ ह्रीं श्री पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । पंचम परमभाव की पूजित परिणति में जो करें विराम | कारण परमपारिणामिक का अवलम्बन लेते अविराम || वासुपूज्य अरु मल्लि-नेमिप्रभु पार्श्वनाथ - सन्मति गुणखान । अर्घ्य समर्पित पंच बालयति को पञ्चम गति लहूँ महान ॥ ॐ ह्रीं श्री पंचबालयतिजिनेन्द्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला (दोहा) पंच बालयति नित बसो, मेरे हृदय मँझार । जिनके उर में बस रहा, प्रिय चैतन्य कुमार । (छप्पय ) प्रिय चैतन्य कुमार सदा परिणति में राजे, पर - परिणति से भिन्न सदा निज में अनुरागे । दर्शन - ज्ञानमयी उपयोग सुलक्षण शोभित, जिसकी निर्मलता पर आतमज्ञानी मोहित ।। ज्ञायक त्रैकालिक बालयति मम परिणति में व्याप्त हो । मैं नमूँ बालयति पंच को पंचमगति पद प्राप्त हो । (वीरछन्द) धन्य-धन्य हे वासुपूज्य जिन ! गुण अनन्त में करो निवास, निज आश्रित परिणति में शाश्वत महक रही चैतन्य - सुवास । सत् सामान्य सदा लखते हो क्षायिक दर्शन से अविराम, तेरे दर्शन से निज दर्शन पाकर हर्षित हूँ गुणखान ॥ मोह-मल्ल पर विजय प्राप्त कर महाबली हे मल्लि जिनेश!, निज गुण - परिणति में शोभित हो शाश्वत मल्लिनाथ परमेश । 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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