Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America Author(s): Jain Center of Southern America Publisher: USA Jain Center Southern CaliforniaPage 11
________________ प्रतिमा दिगम्बर सदा चाहूँ, ध्यान आसन सोहना। वसुकर्म तैं मैं छुटा चाहूँ, शिव लहूँ जहँ मोह ना ॥६॥ में साधुजन को संग चाहूँ, प्रीति तिनहीं सों करौं । मैं पर्व के उपवास चाहूँ, प्रारम्भ में सब परिहरौं ।। इस दुखद पंचम काल माहीं, कुल श्रावक में लह्यो । अरु महाव्रत धरि सकौं नाहीं, निबल तन मैंने गह्यौ ।।७।। आराधना उत्तम सदा, चाहूँ सुनो जिनराय जी। तुम कृपानाथ अनाथ 'द्यानत' दया करना न्याय जी ॥ बसुकर्मनाश विकाश, ज्ञान प्रकाश मुझको दीजिये। करि सुगति गमन समाधिमरन,सुभक्ति चरनन दीजिये ।।८।। पूजा पीठिका ॐ जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु (छंद-ताटक) अरिहंतो को नमस्कार है, सिद्धों को सादर वंदन। आचार्यों को नमस्कार है, उपाध्याय को है वन्दन।।१।। और लोक के सर्वसाधुओं को है विनय सहित वन्दन। परम पंच परमेष्ठी प्रभु को बार-बार मेरा वन्दन ।।२।। ॐ हीं श्री अनादि मूलमंत्रेभ्यो नमः पुष्पांजलि क्षिपामि। मंगल चार, चार हैं उत्तम चार शरण में जाऊँ मैं। मन-वच-काय त्रियोग पूर्वक, शुद्ध भावना भाऊँ मैं।।३।। श्री अरिहंत देव मंगल हैं, श्री सिद्ध प्रभु हैं मंगल । श्री साधु मुनि मंगल हैं, है केवलि कथित धर्म मंगल।।४।। श्री अरिहंत लोक में उत्तम, सिद्ध लोक में हैं उत्तम । साधु लोक में उत्तम हैं, है केवलि कथित धर्म उत्तम।।५।। श्री अरिहंत शरण में जाऊँ, सिद्ध लोक में मैं जाऊँ। साधु शरण में जाऊँ, केवलि कथित धर्मशरणा पाऊँ।।६।। ____ ॐ हीं नमो अर्हते स्वाहा पुष्पांजलि क्षिपामि । Jail Gucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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