Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America Author(s): Jain Center of Southern America Publisher: USA Jain Center Southern CaliforniaPage 16
________________ जग से उदास रहें स्वयं में, वास जो नित ही करें। स्वानुभव मय सहज जीवन, मूल गुण परिपूर्ण हैं।। नाम लेते ही जिन्हों का, हर्ष मय रोमाँच हो। संसार-भोगों की व्यथा, मिटती परम आनन्द हो। परभाव सब निस्सार दिखते, मात्र दर्शन ही किए। निजभाव की महिमा जगे, जिनके सहज उपदेश से। उन देव-शास्त्र-गुरु प्रति, आता सहज बहुमान है। आराध्य यद्यपि एक, ज्ञायकभाव निश्चय ज्ञान है ।। अर्चना के काल में भी, भावना ये ही रहे। धन्य होगी वह घड़ी, जब परिणति निज में रहे ।। ॐह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्योऽनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालाऽयं नि. स्वाहा। अहो कहाँ तक मैं कहूँ, महिमा अपरम्पार। निज महिमा में मगन हो, पाऊँपद अविकार ।। (पुष्पाञ्जलिंक्षिपामि) On Jain Adhyatma Academy of North America (JAANA) Dedicated to Preserve, Propagate & Perpetuate Jain Adhyatma Invites you to become a member and be a part of the team to promote Jain Tatvagyan Visit www.jaana.org for more information. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.015Page Navigation
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