Book Title: Jain Adhyatma Academy of North America
Author(s): Jain Center of Southern America
Publisher: USA Jain Center Southern California
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दे गये हमें वे समयसार, गा रहे आज हम समयसार । है समयसार बस एक सार, है समयसार बिन सब असार ।। मैं हूँ स्वभाव से समयसार, परिणति हो जावे समयसार।
है यही चाह. है यही राह, जीवन हो जावे समयसार ।। ॐ ह्रीं श्रीसीमंधरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तयेजयमालाय नि. स्वाहा।
समयसार है सार, और सार कुछ है नहीं। महिमा अपरम्पार, समयसारमय आपकी।।
(पुष्पाञ्जलिंक्षिपामि)
सच्चाजैन ज्ञानी जैन उन्हीं को कहते, आतम तत्त्व निहारें जो। ज्यों का त्यों जानें तत्त्वों को, ज्ञायक में चित धारें जो ॥१॥ सच्चे देव शास्त्र गुरूवर की, परम प्रतीति लावें जो। वीतराग-विज्ञान-परिणति, सुख का मूल विचारें जो ॥२॥ नहीं मिथ्यात्व अन्याय अनीति,सप्त व्यसन के त्यागी जो। पूर्ण प्रमाणिक सहज अहिंसक, निर्मल जीवन धारें जो॥३|| पापों में तो लिप्त न होवें, पुण्य भलो नहीं माने जो। पर्याय को ही स्वभाव न जाने, नहिं ध्रुव दृष्टि विसारें जो ॥४॥ भेद-ज्ञान की निर्मल धारा, अन्तर माहिं बहावें जो । इष्ट -अनिष्ट न कोई जग में, निज मन माँहि विचारें जो ॥५।। स्वानुभूति बिन परिणति सूनी, राग जहर सम जानें जो । निज में ही स्थिरता का, सम्यक पुरुषार्थ बढ़ावें जो॥६॥ कर्ता भोक्ता भाव न मेरे, ज्ञान स्वभाव ही जानें जो। स्वयं त्रिकाल शुद्ध आनंदमय, निष्क्रिय तत्त्व चितारें जो॥७॥ रहे अलिप्त जलज ज्यों जल में, नित्य निरंजन ध्यावें जो। आत्मन् अल्पकाल में मंगलरूप, परमपद पावें जो ||ll
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