Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 8
________________ अनुक्रम १. मिथ्यात्व-मुक्ति का मार्ग २. कर्म आखिर कैसे करें ? ३. साधना राग की, प्रार्थना वीतराग की ४. हम ही हों हमारे मित्र ५. सम्यक्त्व की सुवास ६. साधना की अन्तर्दृष्टि ७. मार्ग तथा मार्गफल ८. संत स्वयं तीर्थ स्वरूप ९. सम्यक् श्रवण : श्रावक की भूमिका १०. सच्चरित्रता के मापदंड ११. श्रावक-जीवन का स्वरूप १२. व्रतों की वास्तविक समझ . १३. विवेक : अहिंसा को जीने का गुर १४. धार्मिक जीवन के छह सोपान १५. जागे सो मवीर १५५ १८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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