Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ भूमिका “उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा” इस त्रिपदी को प्राप्त करके अंतर्मुहूर्त में गौतमस्वामी आदि 11 गणधर भगवंतों ने द्वादशांगी की रचना की। परमकृपालु परमात्मा महावीर स्वामी ने गणधर भगवंतों पर वास निक्षेप करके उनकी द्वादशांगी को प्रमाणित किया तथा उसके साथ में उन्हें द्रव्य-गुण-पर्याय से तीर्थ (शासन) चलाने की अनुज्ञा देकर तीर्थ (शासन) की स्थापना की। ___ करीबन 2573 वर्ष पहले स्थापित किये गये श्रत और चारित्र रूपी दो पहियों वाले इस जिनशासन को आचार्यों की परंपरा वहन करती आ रही है। दु:षमकाल एवं भस्मग्रह के दुष्प्रभाव के कारण उत्पन्न हुई विकट परिस्थितियों में भी चारित्राचार एवं श्रुतज्ञान की सुरक्षा हेतु अथाग पुरुषार्थ करना पड़ा था। ___ दुष्काल आदि के कारण विस्मृत प्रायः एवं त्रुटित होने लगे सूत्रों को संकलित करने के प्रयास भद्रबाहुस्वामी, खारवेल चक्रवर्ती, स्कन्दिलाचार्य तथा नागार्जुनाचार्य आदि के समय में किये गये थे, ऐसे उल्लेख मिलते हैं। सूत्र रक्षा का अंतिम महत्त्वपूर्ण प्रयास, वीर निर्वाण 980 में देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को पुस्तकारूढ़ करवाकर किया था। सूत्रों की सुरक्षा की तरह उनके अर्थों की सुरक्षा करना उससे भी कठिन कार्य था, क्योंकि अर्थ का विस्तार सूत्र से भी ज्यादा था। सूत्रों की तरह अर्थ भी मौखिक परंपरा से सुरक्षित रखे जाते थे। पहले सामान्य अर्थ दिया जाता था, बाद में आचार्य सूत्रों के अर्थों को अपनी-अपनी शैली से समझाते थे, वह ‘निर्यक्ति' कही जाती थी, उसके बाद अन्त में नय-निक्षेप, सप्तभंगी तथा चार अनुयोगों से परिपूर्ण उसी सूत्र का संपूर्ण अर्थ शिष्य को दिया जाता था। शिष्यों की मेधाशक्ति क्षीण होती देख आर्यरक्षित सूरिजी ने हर सूत्र पर चार अनुयोग करने की पद्धति को बदलकर सूत्रों पर नियत अनुयोग का ही उपयोग करने स्वरूप अनुयोगों का पृथक्करण करके अर्थों को ग्रहण करने एवं याद रखने में सुगमता प्रदान की। नियुक्ति साहित्य में भद्रबाहुस्वामीजी की नियुक्तियाँ प्रसिद्ध एवं प्रचलित बनी। जो प्राकृत भाषा में निबद्ध है। जब नियुक्तिओं से अर्थ को याद रखना दुष्कर हो गया था तथा जिनशासन में लेखन कार्य प्रचलित हो गया था, तब जिनभद्रगणि * सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ णिज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य णिरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे (नंदीसूत्र तथा भगवती सूत्र-शतक -25, उद्देश - 3) इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /006

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 177