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बोले नहिं, खोखारो पण वरज्यो सहि ॥ हुंकारो ने शब्द अत्यंत, ते न करे जे उत्तम जंत ॥ ३ ॥ कार सोय सुणो नर नारी, जागे रांधणी ने पाणिहारी ॥ व्यापारी पंथी कर्षणी, तस्कर चाले चोरी जणी ॥ ४ ॥ ति कारण बोल्यो रही, पश्चिम रातें जागे सही ॥ घोर निद्रायें नवि जागतो, दोय वें ते दो हिलो तो ॥५॥ धर्मार्थ ने त्रीजो काम, वि राधे नरनां नाम ॥ ज्ञान ध्यान करजो वली जाप, जिम टले जन्म मरण संताप ॥ ६ ॥ ७० ॥ ॥ श्लोक ॥
जन्मडुःखं जराडुःखं, मृत्युडुःखं पुनः पुनः ॥ सं सारसागरे दुःख, तस्माज्जागृत जागृत ॥ १ ॥ माता नास्ति पिता नास्ति, नास्ति जाता सहोदरः ॥ श्रर्थो नास्ति गृहं नास्ति, तस्माज्जागृत जागृत ॥ २ ॥ श्र शाहि लोकान् बाति, कर्मणा बहुचिंतया ॥ श्रायुः दायं न जानाति, तस्माज्जागृत जागृत ॥ ३ ॥ कामः क्रोधस्तथा लोजो, देहे तिष्ठति तस्कराः ॥ ज्ञानखङ्गप्र हारेण, तस्माज्जागृत जागृत || || सर्व गाथा ॥ ७४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ राति गमाई सोवतें, दिवस गमाया खाय ॥
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