Book Title: Hitshikshano Ras Author(s): Rushabhdas Shravak Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे वली ॥ आगमथी सुणि श्राणजो ए॥ २५॥ सघ ला गुण संपूर रे, आणंदादिक ॥ सरखा ते नर जाणवा ए ॥ २६ ॥ सर्व गाथा ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ नर जे कडवां तुंबडां, गुणें करीने मीठ ॥ ते माणस केम विसरे, जेह तणा गुण दी ॥ १ ॥ ते अजाण्यां माणसां, रूपें जे राचंत ॥ दीवा ज्योति पतंग जिम, पंख सहित दाजंत ॥ ५ ॥ सखी सुगुण गुण माणसां, फरी न दीजें पूंग ॥ जो धार मलीयें नहिं, तो बेगथी ऊ॥३॥ वाला तुंहिं वरां सियो, गुण ढांक्या धूखेण ॥ जो गुण श्राणत पांदडे, तो न खणंत मूलेण ॥४॥ तेणें गुण अंगें श्रादरो, जांख्या जे पांत्रीश ॥ श्रावकधर्म योग्यज थश, श्रा राधो निशि दिस ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ६४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी॥ ॥शक श्रावकनां लक्षण एह, किम दिनकरणी कहियें तेह॥ किणि परें जागे पश्चिम राति,सुणजो पुरुष तजी परतांत ॥१॥श्रीश्रावकना विधिमां लद्यु, रत्नशेखर सूरीश्वर कडं ॥ निशासमय कार्यादिक जेह, मधुर खरेंज जगाडे तेह॥२॥पण गाढे नर For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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