Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ हिन्दी नाटककार स्वर-ताल, गायक संगीत का आधार हैं। इसमें कानों के द्वारा मन को आनन्द मिलता है । पर संगीत भी नाटक के समान रस नहीं दे पाता। संगीत में कानों की एकाग्रता रहती है, नाटक में नयन, मन, बुद्धि, चित्त सभी की । संगीत में भावों का साकार रूप कभी उपस्थित नहीं किया जा सकता। ___ नाटक न केवल श्रव्यकाव्य (गीति-प्रबन्ध, मुक्तक) और संगीत की तुलना में विशेष महत्त्वपूर्ण हैं, श्राख्यायिका ( उपन्यास, गल्प ) की अपेक्षा भी श्रेष्ठ है। निबंध, शब्द-चित्र आदि काव्य के अन्य गद्य रूपों से तो इसकी तुलना करनी ही व्यर्थ है। काव्य के इन गद्य-रूपों में तो काव्य के सम्पूर्ण गुण श्रा ही नहीं सकते। इनमें रसानुभूति भी बहुत ही क्षीण मात्रा में होती है। हमारा अपना विचार है, इनमें भावोदय की स्थिति रहती है, न की तन्मयता प्राप्त हो ही नहीं सकती। इन विविध गद्य-काव्यों से मनोरं न हो सकता है-मनोरंजन रस की तन्मयता उपस्थित नहीं कर सकता । वह तो मानसिक गुदगुदी की ही स्थिति-मात्र है। इनसे भावों में गतिशीलता नो पाती है, डुबा देने वाली गहनता नहीं पाती । नाटक की रसानुभूति का इनमे शतांश भी आभास नहीं मिलता। ___उपन्यास गद्य-काव्य का बहुत ही स्वस्थ, सफल, स्वतन्त्र रूप है । नाटक और उपन्यास के तत्व समान हैं। अंग समान होते हुए भी रूप में अन्तर है-श्राकार और शरीर में भिन्नता है। उपन्यास में लेखक बहुत-कुछ स्वतन्त्र है। उसकी कला-सीमाएं अत्यन्त विस्तृत और स्वच्छन्द हैं। वह स्वयं उसमें अपनी ओर से सब-कुछ कह सकता है वह संकुचित बन्धनों में रहकर रचना नहीं करता। नाटक में बिलकुल उल्टा है। नाटककार अपनी ओर से वर्णन नहीं कर सकता। जो कुछ भी उसे कहना है, अपने पात्रों के द्वारा ही वह कहला सकता है। चरित्र-चित्रण, कथा वस्तु, वातावरण, संवाद, रस सभी तत्त्वों का समावेश नाटक में पात्रों के द्वारा होता है । उपन्यास में ऐगा नहीं, तब उपन्यासकार की सीमाए कितनी सरल हो गई। इसलिए नाटकनिर्माण में कल्पप-प्रतिभा की अधिक आवश्यकता है, उपन्यास-रचना में इतनी नहीं । नाटक तभी भाषाओं में उपन्यासों से कम ही लिखे जाते हैं। ___उपन्यास और नाटक के रूप, आकार और शरीर बिलकुल भिन्न हो जाते हैं। और रूप भिन्न होने से रस-साधन भी भिन्न हो जाते हैं। नाटक में अभिनय के द्वारा और उपन्यास में वर्णन के द्वारा रस-सिद्धि होती है। नाटक दृश्य हो जाता है और उपन्यास पाठ्य या श्रव्य । उपन्यास को कमरे

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 268