Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 14
________________ आलोक में बैठ पढ़कर भी अानन्द मिल सकता है, नाटक को पढकर नहीं, अभिनीत देखकर अानन्द मिलता है। प्रानन्द-साधन भिन्न होने से रस की मात्रा और सघनता में भी अन्तर पड़ जाता है। उपन्यास में इतना अानन्द नहीं मिल सकता, जितना नाटक में मिलेगा। उपन्यासकार चाहे जितना कलाप्रतिभा सम्पन्न हो, फिर भी भाषा भावों को मूर्त रूप देने में पूर्ण सफल हो ही नहीं सकती,जितना अभिनय हो सकता है-अभिनय में तो भाव स्वयं मूर्तिमान होकर सामने खड़े होते हैं । इसके अतिरिक्त उपन्यास का अानन्द एक साथ दस-बीस व्यक्ति से अधिक नहीं ले सकते, यथा में तो एक ही (पाठक) ले सकता है, पर नाटक में सैकड़ों व्यक्ति एक साथ ही समान श्रानन्द ले सकते हैं। उपन्यास क्योंकि पाठय काव्य है उसमें सब-कुछ भूतकालीन लगता है, मन पीछे मॉगने में कुछ-न-कुछ आनाकानी करेगा ही । नाटक भूत का हो या भविष्य का, वर्तमान में होता है । सभी घटनाए, चरित्र, कार्य-व्यापार सामने होता है । पुतलियों के सामने होती हुई घटनाओं में मन अधिक लगता है । इसमें सभी इन्द्रियाँ केन्द्रित हो जाती हैं। इसलिए उपन्यास की अपेक्षा नाटक अधिक प्रिय हैं. पढ़ने में नहीं, अभिनीत होते देखने म । नाटक लोकतांत्रिक कला है, इसलिए इसका महत्त्व सभी कलानों से अधिक है। यह जनता की धरोहर है-उसके प्रानन्द का प्राधार भी। अन्य कलाओं का अानन्द वही उठा सकता है, जिसको उस कला का शास्त्रीय ज्ञान हो । श्रव्य या पाव्य काव्य में वही रसानुभूति कर सकेगा, जो भापा, अलंकार, छन्द आदि का पंडित नहीं तो जानकार अवश्य हो। नाटक के अतिरिक्त, सभी कलाए व्यक्तिगत रुचि, साधना, साधन और प्रतिभा की वस्तु हैं। आँखों के सामने सभी कुछ होते देखकर हर एक दर्शक इसमें आनन्द लेता है। इसमें इसलिए भी प्रायः सभी रुचियों, प्रतिभा और ज्ञान के व्यक्ति श्रानन्द ले सकते हैं, क्योंकि बोध कराने वाली सभी इन्द्रियाँ रस-प्रोध में एक-दूसरे की सहायता करती हैं । नाटक में सभी प्रकार के व्यक्तियों का सहयोग होता है और सभी प्रकार के पात्रों का अभिनय । नाटक के निर्माण में भी प्रायः सभी प्रकार के कलाविदों की सहायता अपेक्षित है । चित्रकार, रूपकार ( Aike up num), संगीतज्ञ, नृत्य-विशारद से लेकर बढ़ई, दर्जी, स्वर्णकार, रंगने वाले नक की आवश्यकता रहती है। इसलिए नाटक एक सामाजिक तथा लोकतांत्रिक भरतमुनि ने नाटक को सभी कान्यों में श्रेष्ठ माना है-'काव्येषु नाटक

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