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खण्डकाव्य
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इस खण्डकाव्यका रचयिता नवयुवक कवि बालचन्द्र जैन एम० ए० है । कविने पुरातन आख्यानको लेकर जैन संस्कृतिको मानवमात्र के लिए जीवनादर्श बनानेका आमास किया है। भगवान्
राजुल नेमिनाथकी आदर्श पत्नी -- विवाह नहीं हुआ, पर नेमिनाथके साथ होनेवाला था; अतः सकल्पमात्रसे ही जिसने नेमिकुमार को आत्मसमर्पण कर दिया था साथ ही ससारसे विरक्त होकर जिसने आत्म साधना की उस राजुदेवीके जीवनकी एक झॉकी इस काव्यमे दिखलायी गई है । यह काव्य दर्शन, स्मरण, विराग, विरह और उत्सर्ग इन पाँच सर्गों विभक्त है ।
कथावस्तु
काव्य के प्रथम सर्ग 'दर्शन' का प्रणयन कल्पनासे हुआ है, जिसने कथाकै मर्मस्थलको तीव्रता प्रदान की है । कविने जूनागढके राजा उग्रसेन की कन्या राजुल और यादव - कुल-तिलक द्वारिकाधिपति समुद्रविजय के पुत्र नेमिकुमारका साक्षात्कार द्वारिका की वाटिकामे मदोन्मत्त जगमर्दन हाथीसे नेमि द्वारा वसन्त विहारके लिए आयी हुई राजुलकी रक्षा करानेपर किया है । सक्षात्कारकी यह प्रथम घटिका ही प्रणय-कलिकाके रूपमे परिणत हो गई है और दोनोकी आँखे परस्पर एक दूसरेको ढूँढ़ रही थी । राजुलको वसन्त-विहारकर जूनागढ लौट आनेपर प्रेमकी अन्तर्वेदना स्मृतिके रूपमें फलीभूत होकर पीड़ा दे रही थी । इधर द्वारिकामे नेमिकुमारके कोमल हृदयमे राजुदकी मधुर स्मृति टीस उत्पन्न कर रही थी। दोनों ओर पूर्वराग इतना तीव्र हो उठा जिससे वे मिलनेके लिए अधीर थे । आगे चलकर यही पूर्वराग अरुण भास्कर हो विवाहके रूपमे उदित होना चाहता था; किन्तु नियतिका विधान इससे विपरीत था । द्वारिकासे बारात सजधजकर चली, मार्गम राजुल - मिल्टनकी कल्पना नेमिकुमारको आत्मविभोर कर रही है। अचानक एक घटना घटित होती है, उन्हें मुक पशुओका चीत्कार सुनायी पड़ता है
१. सन् १९४८, प्रकाशकः - साहित्य साधना समिति, काशी ।