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पदोंका तुलनात्मक विवेचन हुए अपनी कमजोरियो और त्रुटियोका यथार्थ प्रतिपादन किया है। जैनपद-रचयिताओमे कवि भागचन्दके पद सरदासके इन पदोसे बहुत कुछ साम्य रखते है। आत्मालोचन और पश्चात्ताप सम्बन्धी एक-दो पद तुलनाके लिए उद्धृत किये जाते हैं । सूरदास कहते हैं
मो सम कौन कुटिल खल कामी। तुम सौं कहाँ छिपी करुनामय, सबके अन्तरजामी॥ जो तन दियो ताहि बिसरायो, ऐसौ नोन-हरामी । भरिभरि द्रोह विष को धावत, जैसे सूकर मामी ॥ सुनि सतसंग होत लिय मालस, विषयनि संग विसरामी । श्रीहरि-चरन छाडि विमुखनि की, निसदिन करत गुलामी ॥ पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि में नामी। 'सूरदास' प्रभु मधम-उधारन, पुनियै श्रीपति स्वामी ॥ कवि भागचन्द भी पश्चात्ताप करते हुए कहते हैं
मो सम कौन कुटिल खल कामी,
तुम सम कलिमल दलन न नामी । हिंसक झूठ बाद मति विचरत, परधन-हर परवनितागामी । लोमित चित नित चाहत धावत, दशदिश करत न खामी मो सम०॥ रागी देव बहुत हम जाँचे, राचे नहि, तुम साँचे स्वामी। बाँचे श्रुत कामादिक पोषक, सेये कुगुरु सहित धन धामी ॥ मो सम० भाग उदय से मैं प्रभु पाये, वीतराग तुम अन्तरजामी । तुम धुनि सुनि परमय में परगुण, जाने निजगुण चित विसरामी॥मोसम० तुमने पशु पक्षी सब तारे, तारे अंजन चोर सुनामी । 'भागचंद' करुणाकर सुखकर, हरना यह भवसन्तति लामी ।मो सम०
कवि सूरदासने विपयोकी और जाते हुए मनको रोका है और