Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 233
________________ रोति-साहित्य लिए एक अद्भुत कृति है इसमे ३५० विपयोके नामोंका दोहोम सुन्दर | सकलन किया गया है । नामोमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश भापाके शब्दोका भी व्यवहार किया गया है । कविने विपयारम्भ करते हुए तीर्थ| करके नाम लिखे है तीर्थकर सर्वज्ञ निन, भवनासन भगवान । पुरुषोत्तम आगत सुगत, संकर परम सुजान ॥ वुद्ध मारजित केवली, वीतराग अरिहंत । धरमधुरन्धर पारगत, जगदीपक जयवन्त ॥ यद्यपि यह कोप धनजय कविकी संस्कृतनाममालासे बहुत कुछ मिलता-जुलता है, पर उसका पद्यानुवाद नहीं है । अनेक नामोमे कविने अन्य संस्कृत कोपोकी सहायता ली है तथा अपने शब्दज्ञान-द्वारा अनेक मोल्कि उद्भावनाएँ भी की है। हिन्दी मापाका शब्दमण्डार इसके द्वारा पूरा किया जा सकता है। कविने जिस वस्तु के नामोका उल्लेख किया है, उसका नाम आरम्भमे दे दिया है। कोषकारकी यह शैली आशुबोधगम्य है, तथा इसके द्वारा वस्तु नामोको अवगत करनेमे कोई कठिनाई नहीं होती है । सोनेके नामोका उल्लेख करता हुआ कवि कहता है___हाटक हेम हिरण्य हरि, कंचन कनक सुवर्ण । इसी प्रकार रजत, आभूपण, वस्त्र, वन, मूल, पुष्प, सेना, ध्वजा आदि विषयोकी नामावलीका निरूपण किया गया है । इस कोपमे कुल १७५ दोहे है । कोशमे कविने अचमा, अडोल, अंब, आद, आठ, धान, खारि, चकवा, जयवत, जेहर, झण्ड, टाड, डर, तपा, तलार, नरम, पतली, पेढ आदि देशी शब्दोका भी प्रयोग किया है। मैया भगवतीदासकी अनेकार्थनाममाला भी एक पद्यात्मक कोग है, इसमें एक शब्दके अनेकानेक अर्थोका दोहोमे सकलन किया गया है। इस कोगमें तीन अध्याय है, इनमे क्रमशः ६३, १२२ और ७१ दोहे है।

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