Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 222
________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन तबतक हास्य रसानुभूतिका होना सम्भव नहीं । आन्तरिक आह्लादके होनेपर ही हास्य रसानुभूति होती है, अतएव आनन्दको इस रसका स्थायी भाव मानना तर्कसंगत और वैज्ञानिक है। प्राचीन परम्परामे करुण रसका स्थायी भाव शोक माना गया है, परन्तु महाकविने कोमलताको इसका स्थायी भाव माना है। कारण स्पष्ट है कि शोकके मूलमे चिन्ता रहती है तथा चिन्तामै मयकी उत्पत्ति होती है, अतएव केवल शोक करुण रसका संचार नहीं कर सकता है । करुणाका शब्दार्थ दया है और दया उसी व्यक्ति के हृदयमें उत्पन्न होगी, जिसके अन्तःकरणमे कोमलता रहेगी। कोमलताके अभावमे करुणा बुद्धिका उत्पन्न होना सम्भव नहीं है, अतएव करुण रसका स्थायी भाव कोमलताको मानना अधिक तर्कसंगत है। ___ कोमलतामें उदारता और समरसताका समन्वय या संतुलन है । यह स्वयं अपने आपमे सरल,निर्मल और निष्कल्प है । आधुनिक मनोविज्ञानवेत्ताओंने शोकम अन्तर्द्वन्दजन्य चिन्ताका मिश्रण स्वीकार किया है। तात्पर्य यह है कि आन्तरिक कठिनाइयोके कारण शोकका प्रादुर्भाव होता है, जिससे करुण रसकी अनुभूति नहीं हो सकती। हॉ, कोमलतामे करुणावृत्तिका रहना अवश्यमावी है, अतएव शोककी अपेक्षा कोमलता ही करुणरसका विज्ञान-सम्मत स्थायीभाव है। इस वृत्तिमे चित्तका लचीलापन विशेषरूपसे विद्यमान है। वीररसका पुरुपार्थ स्थायी भाव मानना अधिक वैज्ञानिक है, क्योंकि उत्साह किसी कारण ठढा भी हो सकता है, किन्तु पुरुषार्थमे आगेकी ओर बढ़नेकी भावना अन्तर्निहित है। किसीके वीररस सम्बन्धी कान्यको पढ़कर उत्साहका आना न आना निश्चित नहीं है, किन्तु पुरुपार्थकार्य-साधनकी तीव्र लगनका उत्पन्न होना परम आवश्यक है। पुस्पार्थ एक सजीव प्रवृत्ति है, पर उत्साह अन्यपरअवलम्बित रहनेवाली भावना है। महाकविने भयानक रसका स्थायीभाव चिन्ताको माना है, क्योंकि

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