Book Title: Hindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 212
________________ सातवाँ अध्याय रीति-साहित्य हिन्दीमें रीतिका प्रयोग लक्षण अन्यों के लिए होता है। जिस साहित्यमे काव्यके विभिन्न अगोंका लक्षण सोदाहरण प्रतिपादित होता है, उसे रीति साहित्य और जिस वैज्ञानिक पद्धतिपर-विधानके अनुसार यह प्रतिपादन किया जाता है, उसे रीति-शास्त्र कहते हैं। संस्कृत साहित्यमे इसे काव्यशास्त्र कहा गया है। जैन लेखक और कवियोंने काव्य और साहित्यके विधानको रीतिक अन्तर्गत रखा है। जिस युगमे जैन साहित्यकारोने रीतिसाहित्यका विवेचन किया था, उस युगमे देशका राजनीतिक और आर्थिक पराभव अपनी चरम सीमातक पहुंच गया था । भारतकी कला उत्कर्षक चरम विन्दुपर पहुँचनेके उपरान्त अगतिकी ओर अग्रसर हो रही थी। अप्रतिहत मुगलवाहिनी पश्चिमोत्तर प्रान्तोमें लगातार तीनबार असफल रही, जिससे धन-जनकी हानिके साथ मुगल साम्राज्यको भी भारी धक्का लगा । यद्यपि बाहरसे भारत सम्पन्न और शक्तिशाली दिखाई देता था, पर उसके भीतर क्षयका बीज अकुरित होने लग गया था। जहाँगीरकी मस्ती भौर शाहजहॉके अपव्यय दोनोका परिणाम देशके लिए अहितकर हुआ। ___ मुगल सम्रायके समान ही हिन्दू राजाओंकी स्थिति थी। बहुपत्नीत्वकी प्रथा रहनेके कारण राजपूत राजाओके रनिवासमे आन्तरिक कलह और ईर्ष्याका नग्न नृत्य होता था । अहकारकी भावना इन राजपूत राजाओमे इतनी अधिक थी, जिससे पुत्र भी पिताकी हत्या करनेको तैयार था। फलतः इस विषम राजनीतिक परिस्थितिमे हिन्दू और मुसलमान

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