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भाध्याल्मिक रूपक काव्य
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करें, जिससे शीघ्र ही मोल महलपर अधिकार किया जा सके। प्राणनाथ ! राज्य सँभालते समय तुमने मोममहलको प्राप्त करनेकी प्रतिज्ञा भी की थी। मैं आपको विश्वास दिलावी हूँ कि मोक्षमहलमे रहनेवाली मुक्तिरानी इस ठगनी मायासे करोड़ों गुनी सुन्दरी और हाव-भाव प्रवीण है । उसे देखते ही मुग्ध हो जाओगे। एक बार उसका आलिंगन कर लेनेपर तुम अपनी सारी सुधबुध भूल जाओगे। प्रमाद और अहंकार दोनो ही तुमको मुक्तिरमाके साथ विहार करनेमे वाधा दे रहे हैं।
इस प्रकार सुबुद्धिने नाना तरहसे चेतनराजाको समझाया। सुबुद्धि की वात मान लेनेपर चेतनराजा अपने विश्वासपात्र अमात्य ज्ञान, दर्शन आदिकी सहायतासे मोक्षमहलपर अधिकार करने चल दिया।
काव्यत्वकी दृष्टिसे इस रचनामें सभी गुण वर्तमान हैं। मानवके विकार और उसकी विभिन्न चित्तवृत्तियोका अत्यन्त सूक्ष्म और सुन्दर विवेचन किया गया है। यह रचना रसमय होनेके साथ मंगलप्रद है। 'शिव' और 'सुन्दरका सयोग इसमे इतने अच्छे ढंगसे दिखलाया गया है जिससे यह रचना स्थायी साहित्यमे अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। प्रैलीकी दृष्टि से इस रचनामे संस्कृत तत्सम शब्दोकी प्रधानता, गम्भीरता और अलंकारोका प्रयोग सुन्दर हुआ है। मावात्मक शैलीमें कविने अपने हृदयकी अनुभूतिको सरलस्पसे अभिव्यक्त किया है। दार्शनिकताके साथ काव्यात्मक शैलीमें सम्बद्ध और प्रवाहपूर्ण भावोकी अभिव्यंजना रोचक हुई है । चमत्कारपूर्ण उक्तियाँ हृदयको स्पर्श ही नहीं करती, किन्तु भीतर प्रविष्ट हो जाती है । माधुर्य और प्रसाद गुणके साथ कतिपय पद्योमें ओनगुण भी विद्यमान है । व्रजभापाका निखरा रूप भावोंको हृदयंगम करनेमें अत्यधिक सहायक है। कवि चेतन राजाकी व्यवस्थाका विश्लेपण करता हुआ कहता है
काया-सी जु नगरी में चिदानन्द राज करै। माया-सी जु रानी पै मगन बहु भयो है।