Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ । अपनी बात हरिवंश पुराण ग्रन्थ के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पुराणकर्ता जिनसेनाचार्य ने जिस युग के पुराणपुरुषों के चरित्र-चित्रण किए हैं तथा जिन परिस्थितियों का दिग्दर्शन कराया है, उनसे यह तो स्पष्ट है ही कि उस युग में पुरुष वर्ग में बहु-विवाह की प्रथा थी और राजाओं में तो यह आम बात थी कि युद्ध में हारे हुए राजा को जीते हुए राजा के लिए अपनी कुंवारी कन्या अथवा अविवाहित बहिन देना अनिवार्य-सा था। स्वयंवर के कारण जो राजा कन्या प्राप्त करने से वंचित रह जाते थे, वे अपना अपमान तो अनुभव करते ही, यदि वे बलवान हुए तो स्वयंवर में वरण करने आई कन्या के अपहरण की और उसके कारण युद्ध की घटनायें भी घट जाती थीं, अन्यथा बैर-विरोध तो बढ़ ही जाता, मन में बदले की भावनायें भी घर कर जातीं, जो कालान्तर में संघर्ष एवं युद्ध का कारण बनती रहीं। उक्त ग्रन्थ में यह बात श्रीकृष्ण के पिता कुमार वसुदेव की कथावस्तु में तो उभर कर आई ही है, नारायण श्रीकृष्ण तथा श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नकुमार, भानुकुमार, शंबुकुमार आदि प्रमुख कथा पात्रों के चरित्रचित्रणों में भी विवाहित व्यक्तियों द्वारा स्वयंवर में जीती हुई या अपहृत की गई स्त्रियों की चर्चा है। विद्याधर राजाओं के आकाश में गमन करने आदि कथन जो हमें अतिशय पूर्ण लगते हैं, यदि आज के संदर्भ में भी हम सूक्ष्मता से देखें तो असंभव तो कुछ भी नहीं है; क्योंकि जहाँ विद्याधरों के आकाश गमन की बात आती है, वह तो आज भी हम हवाई जहाज, राकेट और हेलीकॉप्टर आदि के द्वारा आकाश में उड़ते हुए मनुष्यों को प्रत्यक्ष देख ही रहे हैं, संभव है ऐसी ही वैज्ञानिक विद्यायें उस समय उपलब्ध हों। ऑक्सीजन साथ में लेकर हम पानी के धरातल पर एवं हिमालय जैसे पर्वतों पर आज आराम से पहुँच ही जाते हैं। आज जो वैज्ञानिकों द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर, मोबाइल-सेलुलर फोन, टेलीफोन, टेलीविजन, हवाई जहाज, जल जहाज, रेले, बसें, मोटर-गाड़ियों की कल्पनातीत भाग-दौड़, फैक्स, ई-मेल एवं शरीरविज्ञान आदि एक से बढ़कर एक अंगप्रत्यारोपण आदि के सूक्ष्मतम ज्ञान की खोजें एवं उनके प्रत्यक्ष प्रयोग क + +

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 297