Book Title: Harivanshkatha Author(s): Ratanchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 3
________________ । प्रकाशकीय सिद्धान्तसूरि, शिक्षारत्न अध्यात्मरत्नाकर आदि अनेक उपाधियों से अलंकृत पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल जैन साहित्य के सिद्धहस्त लेखकों में अग्रगण्य हैं। उनके द्वारा रचित कथानक शैली में लिखी गई विदाई की बेला, सुखी जीवन, संस्कार, इन भावों का फल क्या होगा, ये तो सोचा ही नहीं था, नींव का पत्थर - ऐसी बहुचर्चित कृतियाँ हैं, जिन्होंने बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इन कृतियों ने जनमानस को आन्दोलित तो किया ही है, जैन वाङ्गमय के प्रति गहरी रुचि भी जाग्रत की है। इसी श्रृंखला में प्रथमानुयोग के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ आदिपुराण और उत्तर पुराण पर आधारित शलाका पुरुष भाग एक एवं भाग दो तथा यह 'हरिवंश कथा' है। जैन समाज में साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर का कोई सानी नहीं है। यह संस्था लागत से भी कम मूल्य में सत्साहित्य उपलब्ध कराने हेतु विश्वविख्यात है। प्रकाशन का कार्य उतना कठिन नहीं है, जितना कि उनकी विक्रय व्यवस्था कठिन है; परन्तु इस ट्रस्ट की ऐसी प्रतिष्ठा है कि इसके द्वारा प्रकाशित साहित्य छपते-छपते देश-विदेश में पहुँच जाता है। अभी तक पण्डित टोडरमल स्मारक पर यदा-कदा यह आरोप लगता रहा है कि प्रथमानुयोग के शास्त्र प्रकाशन पर इसका ध्यान नहीं है; परन्तु अब समाज का यह भ्रम भी तिरोहित हो गया; क्योंकि यहाँ से क्षत्रचूड़ामणि, हरिवंशकथा एवं शलाका पुरुष पूर्वार्द्ध/उत्तरार्द्ध भी प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथमानुयोग के शास्त्रों में ६३ शलाका पुरुषों का चरित्र-चित्रण विस्तार से देखने को मिलता है। कर्मवीर श्रीकृष्ण ९ नारायणों में सर्वाधिक चर्चित रहे हैं। हरिवंश कथा में नारायण श्रीकृष्ण उनके चचेरे भाई तेइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ तथा कौरव-पाण्डव का चरित्र-चित्रण विशेष रूप से किया गया है। हरिवंश कथा की विषयवस्तु आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण पर ही आधारित है। मूलग्रंथ में जहाँ ६६ सर्गों में भगवान आदिनाथ से लगाकर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर तक के जीवन चरित्र का भी उल्लेख है, वहीं पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल ने मात्र २९ सर्गों के माध्यम से 'हरिवंश' के उद्भव और विकास में भगवान शीतलनाथ से भगवान नेमिनाथ तक का काल और उस काल के प्रमुख पात्रों को जीवन्त बनाने का प्रयास किया है। प्रकाशन का दायित्व अखिल बंसल ने बखूबी सम्भाला है। कृति का मूल्य कम करने में सहयोग के लिए हम दातारों के हृदय से आभारी हैं। -ब्र. यशपाल जैन, प्रकाशन मंत्री - पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर 45 ७Page Navigation
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