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सबसे बड़ी आश्चर्य की वस्तु यह है कि श्रीवल्लभोपाध्याय की शिष्य - परम्परा चली हो - ऐसा प्रतीत नहीं होता और न इस सम्बन्ध में किसी प्रकार के उल्लेख ही मिलते हैं । अथवा इनके स्वयं के शिष्य हों तो भी यह निश्चित है कि इनकी परम्परा दीर्घकाल तक नहीं चली । अन्यथा उनमें से कोई तो विद्वान् आदि होता जिनका कोई न कोई उल्लेख अवश्य मिलता ।
साहित्य सर्जना
"The works of the commentator Śri Śrivallabh padhyāya prove him to be an expert in the science of lexicography... He was a master in that field.” – आगमप्रभाकर मुनि पुण्यविजय, निघण्टुशेष प्रस्तावना पृ. ६
उपाध्याय श्रीवल्लभ न केवल प्रामाणिक टीकाकार ही है अपितु महाकवि भी हैं । जहाँ ये व्याकरण, एकार्थी तथा अनेकार्थी कोश साहित्य के उद्भट विद्वान् हैं वहाँ ये चित्रकाव्यों के आचार्य भी हैं, जहाँ इनमें संस्कृत भाषाकी प्रौढता और प्राञ्जलता दृष्टिगोचर होती है। वहाँ इनमें राजस्थानी शब्दभण्डार की सुमधुर शब्दावली भी देखने में आती है । जहाँ इनके ग्रन्थों से ऐतिहासिक स्रोत प्राप्त होते है, वहाँ वैदुष्यप्राप्ति के साधन स्रोत भी प्राप्त होते हैं । इन्होंने छोटे-मोटे अनेकों ग्रन्थों की रचना कर भारती के भण्डार को अवश्य ही समृद्धि - शाली बनाया होगा । वर्तमान समय में इनके द्वारा सर्जित साहित्य जो भी प्राप्त हुआ है, वह निम्नलिखित है :
मौलिकग्रन्थ – १. विजयदेवमाहात्म्य, २. सहस्रदलकमलबद्ध अरजिनस्तव, स्वोपज्ञ टीका सह ३. विद्वत्प्रबोधकाव्य स्वोपज्ञ टीकासह, ४. संघपतिरूपजीवंशप्रशस्ति स्वोपज्ञ टीका सह, ५. मातृका लोकमाला, ६. चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थल, ओकेश-उपकेशपदद्वयदशार्थी, ८. खरतरपदनवार्थी
७.
६.
टीका ग्रन्थ - १. हैमनाममाला शेषसंग्रह टीका, २. हैमनाममालाशिलोञ्छ टीका, ३. हैमलिङ्गानुशासन दुर्गपदप्रबोध टीका, ४ हैमनिघण्टुशेष टीका, ५. अभिधानचिन्तामणिनाममालासारोद्धार टीका, सिद्ध हैमशब्दानुशासन टीका, ७. सारस्वतप्रयोग निर्णय ८. विदग्धमुखण्डन टीका, ९. अजितनाथ स्तुति टीका, १० शान्तिनाथविषमार्थ स्तुति टीका ११. 'केशाः कञ्जालिकाशाभाः 'पद्यस्य व्याख्या १२. 'खचरानन पश्य सखे खचर' पद्यस्य
अर्थत्रिकम् ।
भाषा की
लघु कृति -- १. चतुर्दश गुणस्थान स्वाध्याय, २. स्थूलभद्र एकत्रीसो इस प्रकार २२ छोटी-मोटी कृतियाँ अभी तक मेरी जानकारी में आई हैं। इन कृतियों में हम चाहे इनके काव्यों को देखें अथवा टीकाग्रन्थों को, प्रत्येक पृष्ठ पर श्रीवल्लभ का प्रकाण्ड - पाण्डित्य और सौजन्यपूर्ण औदार्य ही प्रस्फुटित हो रहा है ।
उपर्युक्त सत्र रचनाओं का पूर्ण परिचय करवाना यहाँ संभव नहीं है, केवल उनका संक्षिप्त परिचय - मात्र यहां दिया जा रहा है जो मेरी समझ में, श्रीवल्लभ की प्रतिभा और निपुणता को प्रकाशित करने के लिये पर्याप्त होगा ।
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