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कृत्यों का उल्लेख भी इसमें नहीं आ पाया है। ऐसी अवस्था में मैंने इसका नाम 'संघपति रूपजी वंश प्रशस्ति' रखना ही समुचित समझा है।
संघपति सोमजी ने सिद्धाचल तीर्थ पर खरतरवसही (चौमुखजी की ट्रॅक) का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया था, किन्तु दुर्भाग्यवश मन्दिर की प्रतिष्ठा कराने के पूर्व ही संघपति सोमजी का स्वर्गवास हो गया था ऐसी अवस्था में सोमजी के पुत्र संघपति रूपजी ने सं. १६७५ में खरतरगणनायक. श्रीजिनराजसूरि के करकमलों से इस खरतरवसही की प्रतिष्ठा का कार्य बड़े महोत्सव के साथ सम्पन्न करवाया । दूसरी बात, खरतरगच्छीय पट्टावलियों के अनुसार, इस प्रतिष्ठा महोत्सव के अतिरिक्त संघपति रूपजी के अन्य विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । अतः इस काव्य की रचना का समय प्रतिष्ठा-महोत्सव का समय स. १६७५ के पश्चात् का ही माना जा सकता है।
काव्य में वंशावली के अतिरिक्त जिन जिन ऐतिहासिक कार्यों का इसमें उल्लेख किया है, वे इस प्रकार हैं:
पावाटवंशीय श्रेष्ठि देवराज अहमदाबाद का निवासी था । इसने सं. १४८७ में माघ शुक्ला ५ को मुनिसुव्रतस्वामी के बिम्ब को प्रतिष्ठा खरतरगणाधीश श्रीजिनभटसरि के करकमलों से करवाई थी।
#. योगी की प्रथम पत्नी जसमादे ने अहमदाबाद के तलीयापाडे में सुमतिनाथ का नवीन मन्दिर बनवाया था । . सं. योगी की दूसरी पत्नी नानी काकी ने जैनशास्त्रों को प्रतिलिपियां करवाकर, स्वयं के नाम से अहमदाबाद में ज्ञानभण्डार स्थापित किया था।
१६४४ में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की अध्यक्षतामें शत्रुञ्जयतीर्थ यात्रा का विशालतम संघ निकाला था ।
सं. सोमजी ने सं. १६४८ में हलारास्थान के बन्दियों को द्रव्य देकर कैदखाने से छुड़वाया था ।
मोमजी ने अहमदाबाद के सामलपाडे में सांवला पार्श्वनाथ चैत्य का नवीन निर्माण करवाया ।
सीने सत्रधार धना की पोल में नीचे भूमितल पर आदिनाथ भगवान का
चतमख (चौमुखा) शान्तिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया और सं. १६५३ में यगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से इस मन्दिर की बडे महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा करवाई थी।
सोमजीने इस प्रकार आठ नये मन्दिरों का निर्माण करवाया और सिद्धान्त-टीका आदि सर्वशास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करवाकर अहमदाबाद में ज्ञानभण्डार स्थापित किया एवं खरतरगच्छ की सर्वत्र उन्नति की ।
पास अपर्ण प्रति स्वोपज्ञ टिप्पणी के साथ १४० पद्य ही प्राप्त है। प्रसादगुणयुक्त रचना में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग भी श्रीवल्लभ बड़ी सरलता के साथ करता है। उदाहरण के लिये सं. शिवाजी के वर्णन पद्य द्रष्टव्य हैं
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