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प्रस्तुत टीका में श्रीवल्लभोपाध्याय ने शब्दसाधनिका में समग्र स्थानों पर सिद्ध-हेमशब्दानुशासन के ही सूत्र दिये हैं। अतः उन सूत्रों के आगे मैंने कोष्ठक में सिद्धहेम का उल्लेख न कर केवल अध्याय, पाद और सूत्राँक ही दिये हैं । एवं उणादिसूत्रों के लिए कोष्ठक में ( ं) उ० और सूत्रांक दिये हैं । अन्य ग्रन्थों के उद्धरणों में भी मैंने यथाशक्य कोष्ठक में सूत्रांक या पद्यांक देने का प्रयत्न किया है ।
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श्री ला द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद के निदेशक श्रीदलसुखभाई मालवणिया ने उक्त संस्था की प्रकाशन योजना में इस ग्रन्थ को स्वीकार कर और प्रकाशन कर मुझे जो सम्पादन का अवसर प्रदान किया है इसके लिये मैं उनका कृतज्ञ हूँ । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर के अधिकारी गण और श्री अगरचन्द्रजी नाहटा बीकानेर भी धन्यवाद के पात्र हैं जिनके सौजन्य से सम्पादन के लिये मैं हस्तप्रतियां प्राप्त कर सका ।
म. विनयसागर
अक्षय तृतीया, सं० २०३० ५ मई सन् १९७३
कोटा
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