Book Title: Haimanamamalasiloncha
Author(s): Jindevsuri, Vinaysagar
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 32
________________ २३ शैली में श्रीवल्लभोपाध्याय की यह दूसरी व्याख्या है। इसका रचनाकाल भी अनुमानतः वि. सं. १६६९ के आसपास का ही संभव है । एकाक्षरी-अनेकार्थी कोषों, अनेक व्याकरणों के उणादिसूत्रों और धातुपाठों के आधार से प्रत्येक शब्द के वैचित्र्यपूर्ण अर्थों का प्रतिपादन इस व्याख्या में किया गया है । इसकी १७वीं शताब्दी की ही लिखित दो पत्रों की एकमात्र प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में प्राप्त है। ११. 'केशाः कजालिकाशाभाः पद्यस्य व्याख्या सारस्वतव्याकरणस्थ इस पद्य' की व्याख्या में श्रीवल्लभ ने ब्रह्मा विष्णु महेश के वर्ण, आयुध, वाहन और स्थान का अनेकार्थी दृष्टि से सुन्दर प्रतिपादन किया है और अनेक ग्रन्थों के उद्धरण देकर इसे सरल और सरस भी बनाया है । इसकी एकमात्र प्रति महिमाभक्ति जैन ज्ञानभण्डार (बड़ा भण्डार) बीकानेर, पोथी ७० ग्रन्थाङ्क १८९० में प्राप्त होती है । इसका आद्यन्त इस प्रकार है : [आदि] सारस्वतस्य सूत्रे यत् केशा इति पदं स्फुटम् । तच्छ्लोकटीकामाचष्टे श्रीश्रीवल्लभवाचकः ॥ [अन्त] कृतश्चायं श्रीज्ञानविमलमहोपाध्यायमिश्राणां शिष्य-वाचनाचार्यश्रीवल्लभगणिभिः स च शिष्यादिभिर्वाच्यमानश्चिरं नन्द्यात् श्रीशारदाप्रसादात् । इस टीका में रचना का संवतोल्लेख नहीं है । १२. 'खचरानन पश्य सखे खचरः पद्यस्य अर्थत्रिकम् श्रीवल्लभ ने इस पद्य के भीम, प्रोषितभर्तृका और मङ्गलपाठक को आधार मानकर तीन अर्थ घटित किये हैं । रचना सुन्दर है । इसकी एकमात्र प्रति ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद में मुनि पुण्यविजयजी संग्रह में ग्रन्थाङ्क २६९७ पर प्राप्त है । भाषा की लघृकृतियाँ १. चतुर्दशगुणस्थान स्वाध्याय यह स्वाध्याय (सज्झाय) भाषा में गुम्फित है । इसमें १४ गुणस्थानों का क्रमशः वर्णन है। इसके २३ पद्य हैं । यह श्रीवल्लभ की मुनि अवस्था की प्रारम्भिक कृतियों में से है। १ केशाः कालिकाशाभाः करकारि पनाकभाः । विविगोगतो दद्यः शं वोऽब्जाम्बुनगौकसः ॥१।। २ खचरानन पश्य सखेऽखचरः खचराङ्कितपत्रशतः खचरः । खचरागमने रटते खचर, नची परेरोदिति हा खचर ! ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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