Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 19
________________ 18 तंत्र और योग ... 265 मन को वश में किए बिना योगोपलब्धि-तंत्र से / तंत्र साधना-बहुत छोटे से वर्ग के लिए / तंत्र की प्रक्रिया बहुत कठिन / होशपूर्वक भोग से गजरना / मैथन करें-पर स्खलन न हो / शराब पीएं-होश कायम रखें / मन विषयों में दौड़े-साक्षी अकंप रहे / मन वश में हो, तो योग सरल है । गिरने पर चोट-अकड़ जाने के कारण / छलांग-अल्प लोगों के लिए / क्रमिक सीढ़ियों का जन-पथ / निरंकुश मन से छलांग लगा जाना / गुरु की जरूरत है—यदि विधि और मार्ग पूछते हैं / मन को वश में करना-सीढ़ियों वाला मार्ग/ हत्यारे अंगुलीमाल की तात्कालिक छलांग/अनुकूल परिस्थिति में शांत हो जाना सरल है / कृष्ण युद्ध में भी अकंप हैं / कृष्ण छलांग से पहुंचे हैं / शब्दों में कहा गया सत्य—मत हो जाता है / निःशब्द में है सत्य / मत के साथ स्वतंत्रता है-मानने या न मानने की / सभी शास्त्र मत हैं / मत को पढ़-सुनकर साधना प्रारंभ करना / ज्ञात से अज्ञात में छलांग-संकोच, झिझक स्वाभाविक / दूसरा किनारा है भी या नहीं! / मृत्यु के बाद-योग-भ्रष्ट की गति / संदेह के जो पार गया-वही सहायक / सांसारिक मन–पाने के लिए कुछ छोड़ने वाला / जो छोड़ता है, वही पाता है—उलटबांसी / कबीर की उलटबांसियां / यह किनारा छोड़ दो-उस किनारे की बात मत करो / पूरी गीता-संदेह के सिर काटने की व्यवस्था / बुद्ध सपना भी तोड़ेंगे और विकल्प भी न देंगे / दूसरा किनारा नहीं है / न संसार-न मोक्ष / कृष्ण के आश्वासन-एक झूठ छुड़ाने के लिए दूसरे झूठ का उपयोग / कृष्ण की करुणा। 197 यह किनारा छोड़ें ... 279 शुभ कर्म से सदा सदगति / विनाश या निर्माण सिर्फ संयोग का तत्व का नहीं / दो परम तत्व–पदार्थ और चेतना / चेतना नष्ट नहीं होती-न इस लोक में, न परलोक में / न चेतना मरती है-न शरीर मरता है / केवल संयोग टूटता है / प्रयोगशाला में टेस्ट-ट्यूब में बच्चे का जन्म संभव है / प्रयोगशाला में मनपसंद बेहतर आदमी का जन्म / वैज्ञानिक, संगीतज्ञ, मजदूर-जो चाहें-वैसा संयोग / डुप्लीकेट आदमी भी बना सकेंगे / कृत्रिम गर्भ बनाएंगे-आत्मा नहीं / शुभ कर्म कभी निष्फल नहीं जाते / असफल शुभ कर्म से भी सदगति / असफल अशुभ कर्म से भी दुर्गति / विचार और भाव भी कर्म हैं / हाथी के एक शुभ कर्म ने उसे अगले जन्म में संन्यासी बना दिया / बीज में छिपे-फूल, फल / मूर्छा में पाप किए जाना / एक क्षण में संन्यास घटित / संन्यास का स्थगनः कल का क्या भरोसा / योगभ्रष्ट चेतना स्वर्ग में सुख भोगती है या कुलीन घर में जन्मती है / सभी सुख चुक जाने वाले./ दुख निखारता है / सुखों में प्रतिभा का निखार नहीं होता / संसार चौराहा है / कृष्ण की करुणामय कोमलता और बोधिधर्म की कठोरता / अर्जुन और बुद्ध की मुलाकात संभव नहीं / कृष्ण धीरे-धीरे फुसलाते हैं अर्जुन को / दूसरे किनारे का आकर्षण बताकर यह किनारा छुड़वाना / अपने पाल खोलो-ताकि प्रभु की हवाएं तुम्हें ले चलें उस पार / शक्ति का उपयोग कमजोर करते हैं / परमात्मा सर्वशक्तिमान है / परमात्मा अनंत प्रतीक्षा कर सकता है | हमारा समय अल्प है / किनारा छोड़ें।

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