Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ चित्त प्रभु में पहुंच जाता है / ऊर्जा के मंडल में चेतना का निष्कंप हो जाना / संसार कंपनों का समूह है / वासनाओं के बीच कंपता हुआ चित्त / सोच-विचार से चित्त और ज्यादा अशांत / पत्तों, शाखाओं को मत काटो-जड़ को ही काट दो / क्रोध, लोभ, मान, अहंकार का कुल जोड़ सब में बराबर / जड़ है-मन का ढांचा / मन बदला कि सब बदला / योग की तीन शाखाएं-ज्ञान, भक्ति और कर्म / विचार, भाव और क्रिया / न ज्ञेय बचे न ज्ञाता बचे-सिर्फ ज्ञान रह जाए / सिर्फ नृत्य रह जाए, सिर्फ गीत रह जाए / सिर्फ कर्म रह जाए / महावीर, मीरा और अर्जुन-ज्ञान, भक्ति और कर्म के तीन टाइप। 101 चित्त वृत्ति निरोध ... 149 चित्त की दौड़ सुखोन्मुख है / दौड़ती हुई चेतना मन है / उपराम हुई चेतना आत्मा है / खोज गई–कि चित्त गया / बुद्ध के चार आर्य-सत्यः योग की आधारशिला / जीवन दुख है तो दौड़ समाप्त / पैडल न मारने पर साइकिल का रुक जाना / दुख के अनुभव से हम निष्पत्ति नहीं निकालते / सख की आशा बनाए रखना / भूलों की पुनरावृत्ति / दुख के साथ असंवेदनशील हो जाना / गलती करने की कुशलता / जीवन दुख दिख जाए, तो ही अमृत की खोज शुरू / दुख से बाहर छलांग / दूसरा आर्य-सत्य ः दुख से मुक्ति का उपाय है / योग है-दुख से मुक्ति की खोज / सुख की खोज संसार है / • व्यर्थ को हटा देने पर स्वभाव प्रगट / आनंद स्वभाव है / घर में आग लगी है। यह प्रतीति-और छलांग / हमें कोई आग नहीं दिखाई पड़ती / योग विधि है, उपाय है / योग काम आएगा-यदि जीवन दुख प्रतीत हो गया हो / तीसरा आर्य-सत्यः दुख-मुक्ति की अवस्था है | तीसरे आर्य-सत्य के प्रमाण हैं- स्वयं बुद्ध / पूछना क्या सच में इसमें सुख है? / इससे कभी सुख किसी को मिला? / पहले लगता सुख–बाद में सिद्ध होता दुख / वह कौन है जो जानता-सुख को, दुख को? / रोज एक घंटा अंतस-विश्राम के लिए समय निकालना / व्यर्थ के काम करके समय काटना / क्षण-क्षण जीवन बीत रहा है / खाली आदमी उपद्रव करता है / प्रभु स्मरण के लिए समय कहां है-मन की आत्म-वंचना / समय सबके पास बराबर है / चित्त वृत्ति निरोध का आप क्या अर्थ करते हैं? / निरोध-दमन नहीं है / दमन अज्ञान है / दमन नहीं समझ / समझ-साक्षात्कार-निरोध बन जाती है | जहर को जहर जानते ही–जहर से छुटकारा / क्रोध के पूरे नर्क का साक्षात्कार / फिर क्रोध होना कठिन / गुरजिएफ के आयोजन-साधकों के लिए / कुनकुनी वृत्ति परिचय नहीं बनती / काम, क्रोध, लोभ, भय-इन्हें जानना, इनकी परिपूर्ण तीव्रता में / दो चेहरे-क्रोधी चेहरा, अक्रोधी चेहरा / असली आदमी-नकली आदमी / झूठे मुखौटे तोड़ना / असली रूप-नर्क है, दुख है / असली रूप पहले आर्य-सत्य को प्रगट कर जाएगा / भीतर है-पागलपन, विक्षिप्तता / इंद्रियों से तादात्म्य करने की चेतना की क्षमता / मैं इंद्रियां हूं-तो संसार की यात्रा शुरू / फिर विषयों की खोज में निकलते हैं / भगवत्स्वरूप से चलायमान होना / शरीर और इंद्रियों से भिन्न स्वयं के होने पर ध्यान / मन से, शास्त्र से आए उत्तर व्यर्थ हैं / शरीर से अलग, भिन्न हुई चेतना प्रभु में रम जाती है। दुखों में अचलायमान ... 165 प्रभु को उपलब्ध व्यक्ति समस्त दुखों में अविचलित / हम कुनकुने दुखों के आदी हो गए हैं / भीतर आनंद हो, तो दुख बाहर ही बाहर रहते हैं | समान ही समान को खींचता है-दुख दुख को, सुख सुख को / प्रेमियों की वास्तविक खोज-परमात्मा की / प्रभु-मिलन परम मिलन है / अथक रूप से योग का अभ्यास / ऊब-मनुष्य का विशेष गुण / दुख भी उबाते-सुख भी उबाते / परमात्मा की ओर यात्रा में ऊब की बाधा / ध्यान में सातत्य की कठिनाई / संसार की यात्रा में प्रयत्न नहीं उबाता-प्राप्ति उबाती है / परमात्मा की यात्रा में प्रयत्न उबाता है-प्राप्ति कभी नहीं / बुद्धपुरुषों की वाणी में

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