Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ और हृदय गुफा में प्रवेश / भीतर आप भी खो जाते हैं - तब मिलन / योग है - अंतर- गुफा में प्रवेश की विधि / अकेलापन उदासी लाता है, और एकांत - आनंद / भीतर जाने से बचना / एकांत की खोज / भगवान ही हो जाना। 6 अंतर्यात्रा का विज्ञान ... 87 अंतस प्रवेश का विज्ञान / बाहर से भीतर की ओर / मंदिर की सीढ़ियां पार करनी होंगी / आत्यंतिक वक्तव्य साधक के लिए उपयोगी नहीं / कृष्णमूर्ति द्वारा विधियों व मार्गों का निषेध हानिप्रद / बौद्धिक समझ से कुछ होने वाला नहीं / छोटी-छोटी चीजों का प्रभाव है / सम्यक आसन / शरीर पर न्यूनतम गुरुत्वाकर्षण हो / सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन / जमीन न ऊंची हो न नीची / श्रेष्ठ व निम्न तरंगों के तल / ज्यादा श्रेष्ठ तरंग झेलना भी कठिन / ऊंचे पर्वतों में निर्मित तीर्थस्थल / ध्यान-साधना में मृगचर्म, खड़ाऊं और लकड़ी के तख्ते का उपयोग / ध्यान में अंतर्विद्युत सक्रिय / विद्युत - अचालक वस्तु के लाभ / देह - विद्युत को संरक्षित करना / विद्युत वर्तुल के टूटने के कारण झटके लगना / सम्यक आसन, वस्त्र, भूमि - फिर इंद्रियों को अंतर्मुख करना आसान / योग के आसन और मुद्राओं का विज्ञान / दांतों के पास संगृहीत हिंसा / मसूढ़ों के दबाने से हिंसा का रेचन / क्रोध में दांत पीसना / शरीर के कई बिंदुओं पर संगृहीत तनाव / बुद्ध और महावीर की ध्यानस्थ मूर्तियां / विद्युत वर्तुल से ध्यान सहज / अंतर्विद्युत से अंतआकाश में प्रवेश / कृष्णमूर्ति अनजान में बड़ी साधनाओं से गुजारे गए / पूर्व जन्मों में की गई साधना का भी परिणाम / रिझाई को संबोधि - सूखे पत्ते को गिरते देखकर / सूर्य की विभिन्न स्थितियों का ध्यान पर प्रभाव / सुबह, सांझ - ध्यान में सहयोगी / सूर्य पर त्राटक का अर्थ / ध्यान का प्रारंभ है समय में / ध्यान का अंत है समयातीत में / तरंगों की नदी के साथ बहना / साधना की अनुकूलताएं-प्रतिकूलताएं / ध्यान में उपयोगी – कुश नामक घास का आसन / महावैद्य लुकमान और सुश्रुत द्वारा ध्यान में खोजी गई जड़ी-बूटियां / ध्यान में पौधों से एकात्मता / ध्यान के समय विशेष वस्त्रों का उपयोग / सूती वस्त्र तरंगों को पी जाते हैं / रेशमी वस्त्र निष्प्रभावी होते हैं / मंदिर अर्थात निम्न तरंगों से अप्रभावित स्थान / सत्संग का महत्व / पवित्र पुरुष का दर्शन / चरण-स्पर्श / पवित्र स्थल / गुरुत्वाकर्षणशून्यता में ऊर्ध्वगमन / रीढ़ सीधी रखकर बैठना / नासाग्रदृष्टि से संसार स्वप्नवत लगना / अधखुली आंख से अंतर्यात्रा में सहयोग / नासाग्रदृष्टि से आज्ञाचक्र पर चोट / आज्ञाचक्र के ऊपर परमात्मा - नीचे संसार / आज्ञाचक्र के साधक को ब्रह्मचर्य व्रत जरूरी / ध्यान के समय काम विचार से ऊर्जा का अधोगमन / ध्यान के पहले यौन-चिंतन करने का प्रयोग / काम-चिंतन के लिए मूर्च्छा जरूरी / होश में काम- विचार मुश्किल है / पहले तेईस तीर्थंकरों ने ब्रह्मचर्य की बात नहीं की / महावीर अब्रह्मचारियों के बीच बोल रहे थे / ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन ब्रह्मचर्य है / ऊर्ध्वगमन - बड़ा आनंददायी / जो परमात्मा को जान लेता है - वह परमात्मा ही हो जाता है। 7 अपरिग्रही चित्त 103 प्रभु स्मरण का अर्थ / हमारे हाथ में एक क्षण से ज्यादा कभी नहीं होता / क्षणभर स्मरण की क्षमता ही निरंतर स्मरण बन जाती है / अपरिग्रही चित्त - जो वस्तुओं का उपयोग करता है, लेकिन उनसे राग नहीं बनाता / जीवन की सघनता में जीते हुए अस्पर्शित रहना / एकांत में भाग जाना आसान है / भाग जाना - मुक्त हो जाना नहीं / मालिक - गुलाम - पारस्परिक बंधन / व्यक्ति से राग बनाने में अड़चनें हैं / वस्तुओं से राग बनाना सुविधापूर्ण है / दूसरे को पराधीन बनाया - कि खुद पराधीन हुए / जिंदा आदमी एक स्वतंत्रता है / परिवार टूट रहे हैं / व्यक्ति व्यक्ति के बीच बढ़ती दूरी / वस्तुओं से रोमांस / वस्तु- प्रेम में स्त्रियों का निकास / एक हाथ की ताली : बोध कथा / नेति नेति / भयरहित होने का ध्यान से क्या संबंध है? / मौलिक भय – मृत्यु का / ध्यान महामृत्यु है / मैं की मृत्यु – मन की मृत्यु / बिना अभय ध्यान में प्रवेश नहीं / मृत्यु की प्रतीति ही अमृत का द्वार है / मृत्यु-भय

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