Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ कारण ध्यान से वापस लौट आना / मृत्यु की पूर्व सूचना उपयोगी है / मृत्यु की प्रतीति सौभाग्य है / मन मर जाता है – आप नहीं मरते / ठीक से शांत हुए मन वाला / ठीक शांति - गलत शांति / आत्म-सम्मोहन से जनित झूठी शांति / खुद को धोखा देने की मन की क्षमता / झूठी बीमारी-झूठे इलाज / धोखे की दवा - प्लेसबो / सब पैथियां चलती हैं / मन के खेल / आरोपित शांति - झूठी शांति / अनुशासित परिणाम / सही दिशा है – अशांति को समझना / अशांति के कारण / महत्वाकांक्षा का ज्वर / तनाव के कारण छोड़ें / शांति सहज स्वभाव है। 8 योगाभ्यास - गलत को काटने के लिए 9 योग का अंतर्विज्ञान ... ... अति बाधा है / मनुष्य की रचना बड़ी जटिल है / अंतस प्रवेश के लिए शरीर और मन की लयबद्धता जरूरी / चेतना का अंतर्गमन / स्वास्थ्य अर्थात विदेह-चेतना / सम्यक आहार हो, तो चेतना पेट से मुक्त / सम्यक निद्रा ध्यान में सहयोगी / बुढ़ापे में नींद का कम हो जाना / बच्चों के भोजन और निद्रा की सहज प्रकृति को नष्ट न करना / बच्चों में सम्यक आहार की अंतःप्रज्ञा : इजरायल में हुए प्रयोग / जानवरों की आदतें प्राकृतिक / मनुष्य में सभ्यता के साथ विकृतियों का आना / प्रत्येक व्यक्ति की जरूरत अलग है / जरूरतों का औसत नियम - अवैज्ञानिक / सबके लिए एक ही समय निश्चित करना अप्राकृतिक / स्कूल, दफ्तर और दूकानों का समय व्यक्तियों के अनुकूल पुनर्व्यवस्थित करना / दुख सूचक है / संतुलन का सुख / सम्यक चर्चा से एक आंतरिक सुख का बोध / सुख और दुख मापदंड हैं / सम्यक श्रम - सम्यक विश्राम / हर बात का मध्य खोज लेना / अतियों में जीने वाला ध्यान में न जा सकेगा / गहरी नींद के दो घंटों में शरीर का तापमान दो डिग्री गिर जाना / स्त्रियों का मासिक-धर्म चांद के अनुकूल / सभ्यता के साथ प्राकृति लयबद्धता का टूटते जाना / आदिवासियों की स्वप्नरहित गहरी नींद / स्वप्नों के ग्राफ बनाने वाले यंत्र / सुषुप्ति है - बेहोश समाधि / सुषुप्ति में परमात्मा से जुड़ जाना / संतुलित व्यक्ति को गहरी नींद उपलब्ध / कर्मों में सम्यक चेष्टा का क्या अर्थ है ? / असम्यक चेष्टा - लिखते समय पूरे शरीर का तन जाना / जरूरत से ज्यादा करना या कम करना / संयत बुद्धि का उपयोग / सम्यक कर्म बांधते नहीं / बुद्ध-साधना के आठ सम्यकत्व / सम्यक कर्म के पीछे कोई पछतावा नहीं होता / दफ्तर में घर-घर में दफ्तर का चला आना / सम्यक कर्म करने वाला निर्भर होता है / योगाभ्यास अर्थात स्वनिर्मित बंधनों को काटने का आयोजन / योगाभ्यास की जरूरत नहीं - अगर कोई नर्क निर्मित नहीं किया है / अशांति का हमारा भारी अभ्यास है / कोई परेशानी न हो, तो भी आदमी बेचैन होता है / जीवन में भले को देखना / योग - जीवन में विधायक को बढ़ाने की कीमिया / पुराने गलत अभ्यास को इंच-इंच काटना / गलत अभ्यासों को काटने का अभ्यास / अशुभ पर-भाव है / शुभ स्वभाव है। . 135 119 योगाभ्यास से अशुद्धि कैसे कटती है ? / परमात्मा हमारा स्वभाव है / स्वभाव खो नहीं सकता – केवल विस्मरण हो सकता है / योग है - विस्मरण को तोड़ने की अवस्था / बोध के लिए विपरीत जरूरी / बिछुड़ना - मिलने का प्राथमिक अंग है / भूलने की प्रक्रिया है पर से तादात्म्य / तादात्म्य तोड़ने की प्रक्रिया है योग / योग शुद्ध विज्ञान है / योग है – वैज्ञानिक धर्म की आधारशिला / योग से सोई हुई शक्तियों को जगाना / नब्बे प्रतिशत शक्तियां सोई पड़ी हैं / अंतर्यात्रा के लिए बड़ी ऊर्जा चाहिए / प्राणायाम, आसन और मुद्राओं से – ऊर्जा स्रोतों पर चोट / मस्तिष्क में खून के अधिक प्रवाह का परिणाम / शक्ति के स्रोत – विभिन्न चक्र / योग से एक नए ही मन का निर्माण / शरीर के लिए हठयोग और मन के लिए मंत्रयोग / चित्त पर ध्वनि तरंगों का प्रभाव / अराजक ध्वनियों से मन विक्षिप्त / विशिष्ट ध्वनियों का उच्चार / हर मंत्र का अलग तरंग ढांचा / एक लयबद्ध मन निर्मित करना / योग के तीन आयाम - ऊर्जा, ध्वनि और ध्यान / जहां ध्यान जाता, वहां चेतना बहती / परमात्मा की कोई दिशा नहीं / ऊर्जा के वर्तुल और अंतर्यात्रा / निष्कंप

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