Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 10
________________ अनुक्रम गीता-दर्शन अध्याय 6 कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास ...1 संन्यास को नया आयाम दिया कृष्ण ने / बाह्य परिवर्तन नहीं-अंतरंग का रूपांतरण / बाह्य-कर्म-त्यागआलसियों को सहारा / कर्म में रस नहीं है हमारा / फल चाहिए-इसलिए कर्म करते हैं / कृष्ण का संन्यासः फलाकांक्षाशून्य कर्म / संन्यास जीवन का परम भोग है / जीयो-अभी और यहीं / पुराना संन्यास-पलायनवादी / पीड़ा का कारण वासना है-परिस्थिति नहीं / स्वर्ग और मोक्ष के लोभ से संसार छोड़ना / जीवन का अर्थशास्त्र : दूसरी इच्छा के लिए पहली इच्छा का त्याग / इच्छाएं छूट जाएं तो भी कर्म जारी / ठीक कर्म जीवन का स्वभाव है / इच्छाएं बुरे कर्म करवा लेती हैं / जिसकी कोई इच्छा नहीं, वह संन्यासी / जो इच्छाओं में जीता है, वह गृहस्थ / इच्छाएं न रहीं-तो मन न रहा / निर्दोषता मनुष्य का स्वभाव है / चेतना के दर्पण पर इच्छाओं की धूल / भविष्य में कृष्ण का संन्यास ही बच सकेगा / जहां हो, वहीं वासनाशून्य हो जाओ / निष्काम जीवन का स्वाद भर लग जाए / जीवन—एक खेल, एक अभिनय हो जाता है / तैरो मत-बहो / समर्पण संन्यास है / जो प्रभु की मरजी / प्रभु की मरजी पर जीने वाला संन्यासी / संकल्पों का त्याग योग है, संन्यास है / वासना से संकल्प का जन्म / इच्छा+अहंकार = संकल्प / अहंकार की मृत्यु–महाजीवन का आविर्भाव / बीज टूटे तो अंकुर निकले / ठीक भूमि की तलाश है धर्म / समस्त धर्मों का सार है-तुम मिटो/ अहंकार की खोल टे / डार्विन कहता है : जीवन-संघर्ष में श्रेष्ठतम लोग बचते हैं / कृष्ण कहते हैं : श्रेष्ठ वे लोग हैं जो मिट जाते हैं / सब अपनी सुरक्षा में लगे हैं / संन्यास है-असुरक्षा में उतरना / संकल्प बाधा है / बूंद मिटे–तो सागर हो / संकल्प मिटे-तो परमात्मा हो / आदमी है बूंद-परमात्मा है सागर / संकल्प है-मैं का बचाव / नीत्से का जीवन-दर्शन-संकल्प / कृष्ण के अनुसार संकल्प-शून्य व्यक्ति ही युद्ध में जाने का पात्र है / नीत्से का संकल्प हिंसात्मक है / मन झुकना नहीं जानता / दिन भर मैं-मैं-मैं / अहंकार की सतत बहती अंतर्धारा / मैं का मजा-दूसरे के संदर्भ में / संन्यास है-अहं-विसर्जन का विज्ञान / अहंकार के तीन रूप-ठोस, तरल और वाष्पीय / कामना पूरी न हो तो दुख / कामना पूरी हो तो दुख / इच्छा के रहते सुख संभव नहीं / इच्छा गई–कि सुख बरसा / कृष्ण का संन्यास-हंसता, नाचता, गाता हुआ / प्रकाश जलाओ-अंधेरे से मत लड़ो / पलायन से उदासी / समग्रता से जीना।

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