Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra Author(s): Rupendra Kumar Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 9
________________ प्रकाशकीय कृतज्ञता सर्व गुणों का मूल है, यही समझकर पं. रत्न मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज के हृदय में परम उपकारी पूज्य गुरुवर प्रातः स्मरणीय विद्वद् शिरोमणि शास्त्रोद्धारक आचार्य श्री घासीलालजी महाराज सा० के जीवन चरित्र को प्रकाशित करने की भावना जागृत हुई। और इसी निमित्त से उनकी लोकोत्तर सेवाओं का परिचय सर्वसाधारण को विस्तृतरूप से हो जायगा यह विचार कर आपने अन्य अन्तेवासी शिष्यों की सहायता से पूज्य श्री विषयक यथाज्ञात सामग्री को संकलित कि उन महान पुरुषों से यह लेखन सामग्री मुझे मिली और लिखने का मुझे सोभाग्य मिला जिसके लिए बड़ा आभारी हूं । लिखने में खूब सावधानी रखी हैं फिरभी कुछ त्रुटाये दृष्टि दोष से व प्रेस से रह गई हो तो वाचकगण क्षमा करें कारण यह चरित्र तो एक महान सागर है । दानवोर श्रीमान् गीरधरभाई अमीचन्दभाई बांटविया खाखीजालिया निवासी ने जब यह मंगल जानकारी प्राप्त की तब तुरंत पूज्य श्री के जीवन चरित्र को प्रकाशित करने का भार वहन कर लिया । और इस ग्रन्थ के समस्त प्रकाशन का खच शास्त्रोद्धार समिति को देने का वचन दिया । इस प्रकार चरित्र ग्रन्थ के प्रकाशन में जो बाटविया परिवार ने सहायता पहुँचाई है, अतः समिति द्वारा उनका आभार मानता हूं। पाठक वृन्द से नम्र निवेदन है कि इस चरित्र ग्रन्थ में कोई त्रुटि दृष्टिगोचर होवे तो हमें सूचित करने पर उनका दूसरी आवृत्ति में संशोधन हो सकेगा। हम यह ग्रन्थ हमें जैनशासन के प्रति सर्व प्रकार के कर्तव्यो की प्रेरणा देने में यत्किञ्चित भी सहायक सिद्ध हुआ तो हम अपना परिश्रम सार्थक समझेगे । नम्र पं. रुपेन्द्रकुमार न्याय व्याकरणाचार्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 480