Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra Author(s): Rupendra Kumar Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 7
________________ काव्य ग्रन्थ १ - लोकाशाह महाकाव्य (१४ सर्ग युक्त) २ - शान्ति सिन्धु महाकाव्य ( १५ उल्लास युक्त) ३- मोक्षपद ( धम्मपद की तरह का ग्रन्थ) प्राकृत गाथा संस्कृत छाया और उनका हिन्दी गुजराती में अनुवाद ४- श्रीलक्ष्मीधर चरित्र प्राकृत संस्कृत-हिन्दी कविता सहित स्तोत्र स्तुतियाँ -- १. जवाहिर गुण किरणावली २. नव स्मरण ३. कल्याण मंगल स्तोत्र ४. महावीराष्टक १०. पूज्य श्रीलालकाव्य ११. संकटमोचनाष्टक १२. पुरुषोत्तमाएक १२. समर्थांधक १४. जैन दिवाकरस्तोत्र १५. वृत्तबोध १६. जैनागम - तत्वदीपिका १७. शुक्तिसंग्रह ९. माणिक्य अष्टक १८. तत्वप्रदीप इत्यादि इस विपुल ग्रन्थराशि पर से इसके निर्माता की बहुश्रुतता, सागरवरगम्भोरता विद्वता और सर्वतोमुखी प्रतिभा का सरल परिचय मिलता है आगमों के गूढ से गूढ का भावोद्घाटन करनेवाली टीकाएँ आध्यात्मिक विवेचन करने वाले प्रकरण, विस्तृत दार्शनिक चर्चाओं के साथ अनेकान्त का विवेचन करने वाले न्याय ग्रन्थ इनके प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचय कराने के लिए पर्याप्त है । आचार्य श्री घासीलालजी महाराज ने तो स्थानकवासी के साहित्य को पूर्णता के उच्च शिखर पर पहुँचा दिया है । इस प्रकार व्याकरण, काव्य, छन्द, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र कर आपने स्थानकवासी समाज पर महान उपकार किया है। से स्थानकवासी साहित्य का इतिहास सदा जगमगता रहेगा । नीति आदि विषयों पर विविध ग्रन्थ लिखस्थानकवासी समाज के इस महान् ज्जोतिर्धर ५. जिनाएक ६. वर्द्धमान भक्तामर ७. नागाम्बरमञ्जरो ८. लवजीस्वामी स्तोत्र आचार्य श्री ने साहित्य सेवा के अतिरिक्त भी जन धर्म की महती प्रभावना की है । आपने हजारों मनुष्यों को अहिंसा धर्मानुयायी बनाये, एक चतुर कलाकार मिट्टी के लोंदे को जिस तरह अपनी अंगुलियों की करामात से जी चाहा रूप देता है उसी तरह पूज्यश्री को लोगों के दिल अपने अनुकूल बना लेने की दिव्य शक्ति प्राप्त थी । आपके उपदेश में खास विशेषता थो वह यह कि आपका उपदेश सर्वसाधारण के लिए ऐसा रोचक और उपयोगी होता है कि जिससे ब्राह्मण, जैन क्षत्रिय मुसलमान और पारसो आदि समस्त लोग मुग्ध हो जाते थे । आपने सैकडों राजा महाराजाओं को उपदेश देकर लाखों मूक पशुओं को अभयदान दिलवाया और देव देवियों के नाम पर होने वाली बलि को सदा के लिए बन्द करवाई । समाज के उत्थान के लिए आप सतत जागृत और प्रयत्नशील थे। आप दिन-रात समाज श्रेय के ही स्थपने देखते रहते थे। समाज कल्याण के कार्यों में आप इतने संलग्न रहते थे कि आपको अपने शरीर के स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रहता था आपके परोकारमय जीवन को देखकर एक कवि की ये पंक्तियां याद आती है तुम जीवन की दीप शिखा हो, जिसने केवल जलना जाना । तुम जलते दीपक की लो हो, जिसने जलने में सुखमाना ॥ आप उच्च कोटि के विद्वान भी थे और गहरे दार्शनिक भी थे । संस्कृत प्राकृत, उर्दू, फारसी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि १६ भाषाओं में पारंगत थे जैनागमों का आपने तलस्पर्शी अध्ययन किया 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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