Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra Author(s): Rupendra Kumar Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 6
________________ न्याय १. न्याय रत्नसार (न्याय प्रथमा परोक्षोपयोगी ग्रन्थ) अध्याय १-६ तक २. न्याय रत्नावली (न्याय मध्यमा परीक्षोपयोगी) अध्याय १-६ तक ३. न्याय रत्नावली (स्याद्वाद मार्तण्ड टोका सहित) (शास्त्री परीक्षोपयोगी ग्रन्थ) अध्याय १-६ तक ४. न्याय रत्नावली स्याद्वाद मार्तण्ड टीका सहित (न्यायाचार्य परीक्षोपयोगी) अध्याय १-६ तक व्याकरण १. प्राकृत चिन्तामणि (प्राकृत व्याकरण) प्रथमा परीक्षोपयोगी २. प्राकृत कौमुदी (प्राकृत भाषा पर सम्पूर्ण प्रकाश डालने वाला पंचाध्यायी ग्रन्थ) १. आहेत् व्याकरण (संस्कृत व्याकरण) लघुसिद्धान्त कौमदी के समकक्ष ग्रन्थ २. आर्हत् व्याकरण (सिद्धान्त कौमुदी के समकक्ष ग्रन्थ) कोष १. श्रीलाल नाममाला कोष २. नानार्थोदय सागर कोष ३. शिव कोष (अमर कोष की तरह का ग्रन्थ) श्रीलालनाम माला कोश-यह आधुनिक शब्द कोष है । इसमें पूज्यश्री ने अनेक प्रचलित अग्रेजी शब्दों का वैज्ञानिक पद्धति से संस्कृति करण किया है । इस विशिष्ट भाषा कोश को देखकर कई विद्वान बडे प्रभावित हुए । उन विद्वानों में से कुछ विद्वानों की सम्मतियाँ इस प्रकार है-.. सर्वतन्त्र स्वतन्त्र श्रीयुत पं. बालकृष्ण शास्त्री, न्याय-वेदान्त प्रधानाध्यापक, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस श्रीलालनाममालानामधेयं नूतनं नामलिङ्गानुशासन निर्माणकर्तरि व्याकरणप्रवीणतां प्रकाशयदवयवयोगसमन्वय स्पृशा दृशा संस्कारकर्मीकृताधुनिकव्यवहारप्रथित-परदा-दरवारित्यादिपदकदम्बकावेदनेन प्रभूतेषु संस्कृताभिभाषण प्रभृतिकार्येषु परमोपयोगिता मावहतीति । प्रधानाचार्य आत्मारामजी महाराज लुधियाना (पंजाब) मनोरमा कृतिरेषा सानन्दनस्माभिखलोकिता । इदानींतन शैल्यामनोहरा उत्तमा उपयोंगिनश्च शब्दा अत्र निबद्धाः सन्ति । संस्कृत प्राथमिकशिक्षायां पुस्तिकेयं परमोपयोगिनी भविष्यतित्याशास्महे । • उत्साहरहि. तानामुत्साहप्रदम्भूयात् कृत्यमिदं । को जानाति चिरसुप्तस्यास्मदोयसमाजस्य जागृतेः सुचिहंस अस्तु प्रशंसनीयश्चायं भवदीयः परिश्रमो, धन्यवादा. हि भवान् । ... .... इनके अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने भी इस ग्रन्थ की बडी प्रशंसा की है। सिद्धान्त ग्रन्थ १. गणधरवाद (मूल, प्राकृत गाथा, उनकी संस्कृत छाया, उन पर संस्कृत में विशद टीका की रचना कर गणधरों के प्रश्नों का एवं उनके उत्तरों का सुन्दर विवेचन किया है । १ गृहि धर्म कल्प तरु (मूल प्राकृत गाथा उसकी संस्कृत छाया और उन पर हिन्दी गुजराती विवेचन २. जैनागमतत्त्व दीपिका (जैनपारिभाषिक शब्दों का सुन्दर हिन्दी विवेचन ३. तवप्रदीपिका (नव तत्त्व का विशद विवेचन मूल प्राकृत गाथाएँ उसकी संस्कृत छाया और उनका हिन्दी में विवेचन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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