Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 7
________________ कोठी देखो यह चित्र... LLLLL माता सास वस्त्र सलिटी बंगला कार TAAN दशनावर साला अन्तरायजानाक SV TRACKS 'बहिन मनुष्य गति स्कूटर मोह मोहनीय कर्म TUSH नाम आयु कमे मामा कर्म MUNI टीवी नरक गति चाचा POP वस्त्र यह तो मैं मित्र दुकान रेडियो arn समझ गया कि "मैं"कौन हूँ परन्तु इससे दुख कैसे मिट जायेगा? फोन मैं को समझने के बाद श्रद्धा करो कि मैं स्वतन्त्रहूँ। मेरा परिणाम सुरख-दुख, किसी के आधीन नहीं, मैं अपनी ही करनी करता और उसका फल भी मैं ही भोगता हूँ। और स्वयं ही अपने स्वरूप में स्थित होकर मुक्त होऊंगा। और..

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