Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 19
________________ लड़का बीमार पड़ा है, आरवरी सांसें गिन रहा है, सेठजीव सेठानी उसके पास बैठे है.... बेटा क्या जाने की तैयारी कर रहे हो, क्या मुझसे रूठ गये हो, मेरा पिता जी, मेरा आयु कर्म क्या होगा तुम्हारे बिना समाप्त हुआ चाहता है। अब मुझे जाना ही पड़ेगा। काल मुझे अब हरगिज नहीं छोड़ेगा। तू मेरा लड़का है। पिताजी, आप भूलते बेटा, क्या कहते | पिताजी, यहां कौन किसका मेरा तुझ पर पूर्ण हैं,संसार में कोई हो तुम। तुम तो है? मैं आपका हूँ यही अधिकार है। कौन किसीकानहीं है। मेरा मेरे बुढ़ापे का मान्यता तो आपको दरवी लेजा सकता है तुझे व आपका इतना ही सहारा हो, मेरा कर रही है। मेरे प्रति जो में भी देवताहूँ।मैं सम्बन्ध था। मैं अपनी क्या होगा,कुछ आपका राग है वही तो तुझे नहीं जाने दंगा। मर्जी से आया था,अपनी तो सोचो। मेरे आपकी परेशानी का कारण बिना मेरी मर्जी मर्जी से जा रहा है। आप | तोबस तुम ही है। केतू कैसेजासकता तो क्या,कोईभी मुझे हो। है भला? अब रोक नहीं सकता। "राजा, राणा, छत्रपति, हाधिन के असवार। मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बारदल,बल,देवी,देवता, मात-पिता परिवारामरती बिरियांजीवको,कोई न रावन हार GOO HWCU VI

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