Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 33
________________ गाये जा गीत अपन के मन को सदा ही प्रभु सुमरण में लगा कर उसे आनन्दमय रखना चाहिये। ईश्वर का स्मरण नित्य निरंतर सुख की वृद्धि करता है। चारित्र-निर्माण मनुष्य का प्रधान उद्देश्य है चारित्र निर्माण से अभिप्राय व्यक्ति सद्गुणों के संवर्द्धन और विकास से उत्तम और सुयोग्य नागरिक बनकर अपनी व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ अपने समाज और देश के अभ्युत्थान में पूर्ण रूप से सहयोग देने में समर्थ हो सके। मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि सद्गुणों की प्राप्ति के निमित्त निरन्तर प्रयत्नशील रहकर मनुष्य अपने चारित्रबल को अधिक दृढ़ करे । मनुष्य स्वभावतः ही अनुकरण शील प्रकृति का है वह दूसरों को जैसा करते देखता है स्वयं भी वैसा ही करने लगता है। परम पू० क्षु० मनोहर वर्णी सहजानन्द महाराज के प्रवचनों को डा० मूलचंद जी ने बालकों को सत्ज्ञान कराने हेतु एवं बाल संस्कार हेतु इस पुस्तक का रूप दिया। इस अंक के प्रकाशन में सहयोग श्रीमान धर्मानुरागी श्री सुमेर चंद जी के द्वारा सहजानन्द ग्रन्थ का मैं बहुत ही आभारी हूँ। इस चित्रकथा से सभी आत्मार्थी लाभ लेकर आत्मा की उन्नति करें। ब्र० धर्मचंद शास्त्री ★ सम्पादक - ब्र० धर्मचंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य ★ आलेख - डा० मूलचंद जी मुजफ्फरनगर ★ चित्रकार - बनेसिंह ★ प्रकाशन - आचार्य धर्म श्रुत ग्रन्थ माला जयपुर ★ I.S.B.N. 81-85834-70-9 ★ मूल्य - 10 रुपये ★ प्रकाशन वर्ष - 1996 वर्ष ★ अंक 28 ★ प्रकाशन वर्ष __- जैन मन्दिर गुलाब वाटिका, लोनी रोड, दिल्ली - श्री समेर चंद जैन, 15 प्रेमपुरी, मुजफ्फरनगर

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