Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 31
________________ तो सेठजी दुख सुख का कारण हानिलाम नहीं है, परन्तु में करता हूँ हमारी यह मान्यता ही हमें दुरवी करती है,यही बात ठीक है ना? हाँ बेटा, अब तुम ठीक समझे। AVIN/I1111111 देखो पूज्य सहजानन्द जी महाराज ने आत्म-कीर्तन में भी यही तो कहा है" होता स्वयं जगत परिणाम, में जगका करता क्या काम। दूर हटो परकृत परिणाम, सहजानन्दरहूँ अभिराम।। अब में भली भांति समझ गया सेठजी 29

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