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कैलाश फिर भौचक्क-विचारने लगा...
बड़े अजीब आदमी है यह सेठजीतो। दसलाव की हानि में माथे में सिकन तक नहीं और पन्द्रहलाख के लाभ में चित्त में प्रसन्नता नहीं। चलू सेठजी ही से पू बात क्या है?
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उलझन, कैसी उलझन भैया?
| कैलाश पहुंच गया सेठ जी के पास...
सेठजी, मैं बहुत दिनों से आपके पास रह रहा हूँ परन्तु आपने मुझे एक शब्द भी उपदेश का नहीं कहा।
सेठ जी. सीखता तो क्या? याहां तो एक नई उलझनऔर पैदाहो गई दिमागमें
भैया,मैं तुम्हें क्या उपदेश देता। हाँ,यह तो बताओ इलने समय से तुम यहां हो,तुमने क्या देखा,यासीरवार
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