Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TOGO, Se गाये जा गीत अपन के Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प. पू० क्षु० मनोहरलाल जी महाराज Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक सेठ प्रकाश चंद पहुँचे अपने एक मित्र धनीराम जौहरी के पास । और.. रेखाकनः बनेसिंह भैया मैं बहुत दुखी हूँ। छः महीने पहले मेरी फैक्टरी आग के कारण जलकर राख हो गई थी, तीन महीने पहले मेराजवान बेटा चल बसा। क्या कर्क, कुछ समझ में नहीं आता? IVECEN 'ooo u e ute 4U भैया कुछजल-पान करो, सब ठीक हो जायेगा। टाकल Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतने में एक ग्राहक आया और धनीराम से बोला ... धनीराम ने टुकड़े को तौला और वजन ठीक पचास ग्राम हो गया फिर... सेठजी मुझे लड़की के विवाह के लिए रुपयों की बहुत सख्त जरूरत पड़ गई हैं। आप यह पचासग्राम सोने का टुकड़ा ले लो और इसका मुल्य मुझे दे दो । बैठो, मैं तौलकर देखता हूँ और तुम्हें इसके रूपये दे देता हूँ । भैया वजन तो पचास ग्राम है परन्तु मैं मुल्य पैतालीस ग्राम का ही दे सकता हूँ । भैया इसमें पांच ग्राम का खोट है यानि इसमें पांचग्राम कुछ और चीज मिली है जो सोना नहीं है। 2 ऐसा क्यों सेठजी ? ठीक है सेठ जी पैतालीस ग्राम के ही दाम दे दीजिये। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्राहक दाम लेकर चला गया। सेठ प्रकाश चंद बैठे सब कुछ | देख रहे थे। बोले ... कैसे भैया ? समझ में नहीं आया। मित्र, बात कुछ समझ में नहीं आई मिले हुए सोने व खोट में तुमने सोने का वजन कैसे जान लिया ? भैया यह बताओ जब तुम्हारी फैक्टरी जल गई थी तो तुमने कहा था ना कि मैं नष्ट हो गया, जब तुम्हारा लड़का मरा, तुम रो रो कर कह रहे थेना कि मैं मर गया और परसों जब तुम नया कुरता पहन कर आये थे तो तुमने कहा था ना कि दर्जी ने मेरा नाश कर दिया क्योंकि जरा ठीक नहीं कुरता बना था ? ग्र اردددد 221/ 3 हाँ, कहा तो था, परन्तु, इससे क्या ? बस भैया, यही तो दृष्टि की करामात है। तुम भी यदि अपने को ऐसी ही पैनी दृष्टि का प्रयोग करके देखो तो तुम्हें दुखों से मुक्ति मिल जायेगी भैया तुम केवल अपने को यानि "मैं" को देखो फिर तुम जान जाओगे कि ये सब पदार्थ मकान, धन, स्त्री, पुत्र आदि तुम हो ही नहीं, फिर क्यों इन्हें अपने से चिपकाये हुए हो ? tul Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठीक है भैया ये तो मेरे से बिल्कुल अलग पड़े है परन्तुयह शीर... ठीक है, शरीर तुमसे मिलाजुला,एकमेकसा जरूर है। परन्तु यह भी तुमसे भिन्न ही है क्योंकि मरने पर आत्मा (मैं) चलीजाती है और शरीर यहीं पड़ा रह जाता है। और ... यही नहीं, तुम्हारे साथ लगे ये कर्म भी तुमसे भिन्न है, और यही नहीं तुम्हारे अन्दर उत्पन्न होने वाले राग, द्वेष आदि विकारी भाव भी तुमसे भिन्न है क्योंकि किन्हीं महापुरुषोंने इनको भी अलग करके दिखा दिया है। तो फिर मैं क्या बस इन सबको अपने से अलग करते जाओ,जो आरिवर में बचे वह " में Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोठी देखो यह चित्र... LLLLL माता सास वस्त्र सलिटी बंगला कार TAAN दशनावर साला अन्तरायजानाक SV TRACKS 'बहिन मनुष्य गति स्कूटर मोह मोहनीय कर्म TUSH नाम आयु कमे मामा कर्म MUNI टीवी नरक गति चाचा POP वस्त्र यह तो मैं मित्र दुकान रेडियो arn समझ गया कि "मैं"कौन हूँ परन्तु इससे दुख कैसे मिट जायेगा? फोन मैं को समझने के बाद श्रद्धा करो कि मैं स्वतन्त्रहूँ। मेरा परिणाम सुरख-दुख, किसी के आधीन नहीं, मैं अपनी ही करनी करता और उसका फल भी मैं ही भोगता हूँ। और स्वयं ही अपने स्वरूप में स्थित होकर मुक्त होऊंगा। और.. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं निश्चल हूँ, अनेकों भवों में भटकने पर व अनेक कषायें करता हुआ भी मेरा चैतन्य स्वरूप ज्यों का त्यों रहा, मैं कभी अचेतन नहीं हुआ। और मैं निष्काम मी हूँ यानि इच्छा से रहित चैतन्य स्वभावी हूँ । भैया, बात तो आपकी ठीक ही जंचती है। मैं पर पदार्थो में बहुत प्रयत्न करता हूँ यह करूँ, वह करूँ पर करे कुछ भी तो नहीं पाता। बस यही या कुछ और भी ? ७ HO और हां, यह भी और समझ लो कि तुम भी किसी का कुछ नहीं कर सकते, इसलिए जो हो रहा है उसको जानते देखते रहो अजायबघर में रखी चीजों की तरह। यानि ज्ञाता हष्टा बने रहो। हाँ भैया, बिल्कुल ठीक है। वर्णी जी ने भी तो यही कहा है " हूँ स्वतन्त्र, निश्चल, निष्काम। ज्ञाता, दृष्टा, आत्मराम । Away Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक भक्त पहुंचा भगवान के द्वार पर-दरवाजा खटखटाया-अन्दरसे आगाज आई.. क्या चाहता आपके दर्शन है ? कौन है भाई? DADAV GOGI UC आपका भक्त हूँ भगवन्! reOOD क्या मिलेगा मेरे दर्शन से? शांति सुरव जाउ 3EAUNउV, 300300333 CLICE, SLT Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूलताहै भाई! मेरे दर्शन से तो कुछ भी नहीं मिलेगा तुझे नहीं नहीं भगवन् ! ऐसा न कहिये। सुनता चला आया हूँ आपके दर्शनों से अनेक पापी तिरे है, पतितों का उद्धार हुआ है, मेरा भी कल्याण हो जाएगा, दर्शन दीजिये प्रभु। नहीं भैया। मेरे नहीं अपने दर्शन कर,अपने को पहिचान, अपने को निरख, तेरा कल्याण होगा| नहीं नहीं ऐसान कह, जो मैं हूँ वही तो तू है क्या कहा? जो तुम वही मैं! यह कैसे भगवन? मैं तो मुहापापी है भगवन् मैं तो नीच हूँ। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देख जैसा तू अब है, पहले मैं भी तो वैसा ही था, तेरे जैसा ही रागी, द्वेषी, मोही, दुरवी। मैं क्या हूँ, मेरा स्वरूपक्या है इसका सम्यक श्रद्वान किया, इसका सच्चा ज्ञान किया, और लग गया अपने से भिन्न राग, द्वेष,मोह आदि को दूर करने में और अब बनें गया हूँ शुद्ध,परम शुद्ध "निर्विकार। फिर आप भगवान कैसे बन 27 गये? तो क्या मैं भी आप जैसा बन सकता हूँ कभी भी? बन क्या सकता है, तू तो मम जैसा है ही। जो मेरा व्यक्त स्वरूप है वही तो तेरा स्वभाव है और तू जैसा शक्ति रूपसे है.वैसा ही मेरारूप प्रगट हो गया है। वर्तमान में, हाँ मुझ में न तुझ में केवल एक अन्तर है और वह अन्तर भी ऊपरी है, स्वभाव में नहीं। तेरे में राग भरा पड़ा है और मैंने उस रागको दूर कर दिया है। तू भी उस राग को दूर कर देंास्वंय भगवान बन जायेगा। फिर तुझे,किसी के दर्शन की आवश्यकता नहीं रहेगी। क्यों नहीं, क्यों नहीं! यह बिल्कुल सच है। क्या तूने नहीं सुने मनाहरजी वर्णी के ये शब्द - "मैंवह हूँ जो? भगवान, जोमै वह है भगवान । अन्तर यही ऊपरीजान, वेविराग यह राग वितान। सुना तो हैं भगवन, परसमझा नहीं उनका मर्म। अब मैं क्या करू? क्या कहा भगवन! म्यायह सच है, क्या मैं भगवान बन जाऊंगा? Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बस इन वाक्यों का अर्थसमझ ले, समझ ही नहीं ले,परन्तु उन पर अटूट श्रद्वा कर, और इसके अनुसार लक्ष्य बनाकर चल देउसी राह पर जिस और ये संकेत कर रहे हैं, लेबन जायेगा तु भी भगवान। 5566 SIESTER 5ORDSSS.. ठीक है भगवन-अब में समझ गया। अब देर नहीं करूंगा। बस चलता हूँ। निग्रन्थ दीक्षाले, राग, द्वेष, मोहको दूरकरके आप जैसा ही बनकर रहूँगा |आजनहीं तो कल अवश्य ही बनूंगा आपजैसा ही। जा तेरा कल्याण हो। भगवन, आजम धन्य हो गया,मुझे प्रकाश मिल गया अगले दिन, सबने देखा, भक्तले रहा है मुनि दीक्षा... गुरु जी महाराज, मैं ) हाँ हाँ आपकी शरण में क्यों आगया हूँ, मुझे नहीं-मली दिगम्बर दीक्षा विचारी देदीजियेगाना तुमने। और भक्त बन गया दिगम्बर मुनि, सब अंतरंगत बहिरंग परिग्रह का त्याग कर दिया, लग गया तत्व मनन में, आत्म चिन्तन में काट डाला कर्मों को और एक दिन वही भक्त बन गया भगनान..... Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन । एक भिखारी पहुँचा एक महात्मा के पास और द्वार पर दस्तक दी... CAMETIMAULI (आया आई,कौन हो? क्या चाहते हो? भिरवारी हूँ महात्मन भीरव,सुख की भीरवा खाली नजाने दो। मेरी झोली में अवश्य डाल दो, चाहे थोड़ा चाहे अधिक। निराशन करो। AARRINGuul ठहर,ठहर,जरा ठहर-एक Januali/ बात सुना सामने जो नदी है, उसमें एक मच्छ रहताहै,तू उसके पास चलाजा, वह तुझे अवश्यसुख देगा। क्या कहा? मच्छ और सुरव देगा। क्यों मेरे से मजाक करते हो? क्यों मुझ गरीब की हंसी उड़ाते हो? MIM इसमें हंसी की क्या बात है भाई, क्या तुम्हें इसमें कुछ शंका है? गुरु जी, मैं दर-दर की ठोकरें खाचुका, सबसे झोलीपसारपसार कर सुखकी भीख मांग चुका, पर कोईनदेसका सुख, जरा सा भी Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहाँ-कहाँ गये हो भाई, जरा मैं भी तो सुनूं सुनना ही चाहते है तो सुनिये। दुनिया में सबसे हितकारी होती है माँ माँ, जिसने नौ महीने मुझे पेट में रखा, खुद गीले में सोई पर मुझे सूखे में सुलाया, रात-रात जागी, एक दिन मेरे सर में दर्द हुआ, सारी रात बैठी दबाती रही मेरे सिर को, परन्तु सुखी न कर सकी। फिर कहाँ गया ? गया पत्नी के पास । तन, मन, धन, सभी कुछ तो न्यौछावर करने को तैयार हो गई परन्तु मैं सुरखी न हो सका। 12 फिर कहाँ खोजा सुख को ? फिर सोचा शायद पुत्रों के पास सुख मिलेगा, मित्र सुरवी कर देंगे, पहुंच गया उनके पॉस, पर मेरी झोली खाली की खाली ही रही, कोई न देसका सुख किंचित भी इसके बाद क्या किया तुमने ? Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठीक है भैया, तुमने सब उपाय तो कर लिये, मेरे कहने से एक बार उस मच्छ के पास तो हो आओ, वह जरूर ऐसा उपाय बतायेगा जिससे तुम अवश्य सुखी हो जाओगे । और वह मिरवारी पहुँच गया नदी के किनारे-मच्छ के पास... सुना है, धन में सुख है, सम्पत्ति में सुख है, नामवरी में सुख है. पद प्राप्त करके सुखी बन जाऊंगा, बस लग गया उन्हें बटोरने में। सुख तो क्या मिलता इनमें, जितना जितना ये मिले, दुख बढ़ता रहा, आकुलता बढ़ती रही। Collle भैया क्षमा करना। क्या तुम भी मूर्ख नहीं हो, सुख सागर तुम्हारे अन्दर हिलोरें मार रहा है और मांग रहे हो मुझ से सुख । 13 मन तो नहीं मानता । परन्तु आप कहते हो तो जाकर देखता हूँ वहाँ भी । भैया मुझे महात्माजी तुम्हारे पास भेजा है सुख को लेने के लिये हँ हाँ हाँ अभी देता 'सुख। परन्तु भैया मुझे बहुत जोरों की प्यास लगी है, जरा एक लोटा पानी तो लाकर पिला दो प्यास बुझ जायेगी, तब तुम्हें दूंगा सुख । अहा ! हा! हा ! तुम तो निरे मूर्ख हो पानी में रहते हो और कहते हो प्यासा हूँ। 227 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरे अन्दर सुरव भरा पड़ा है, कैसे भैया? जब ऐसा है तो मैं दुरवी क्यों हूँ भाई? सुरव का ही नहीं, तू तो अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन व अनन्त शक्ति का भी भंडार है। तू तो सिद्ध भगवान के समान है,जहां कोई आकुलता नहीं और आकुलता के अभाव में बससुरवही सुरव, तूने सदैवपर-पदार्थो की ओर ही देरवा, उनमें ही रवाजा अपने सुख को, उनसे ही भीख मांगी सुखकी। उनसे सुख की आशा कर करके अपने ज्ञान को ही गंवा दिया और भिखारी बना दुरवी हो रहा है। तो अब क्या कळं भेया? भिरवारीपन छोड़ दे, अपने अन्तर में झांक, अपने रखजाने को देख बस सुरवीहो जायेगा क्यों नहीं, क्यों नहीं । सुनी नहीं तूने आत्मकीर्तन की ये पंक्तियां:"मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति सुवज्ञान निधान। किन्तु आशवशरतोया ज्ञान, बना भिरवारी निपट अजान ।।" क्या सचमुच Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चार सेठ धर्मदासजी व उनकी प्रिये, हमारे विवाह को आठ वर्ष हो गये। घर में पत्नी बैठे हैं। दोनों ही उदास... सब कुछ है, करोड़ों की सम्पत्ति, सब ठाठ-बाट परन्तु ... यही चिन्ता तो मुझे भी रवायेजा रही है। एक पुत्र होजाता हम सुखी हो जाते,बुढ़ापे का भी सहारा हो जाता। दिन बीतने लगे- बजाओ, बजाओ, खून बाजे बजाओ, दो वर्ष बाद पुत्ररत्न | आज मेरा भाग जागा है, मेरे घर पुत्र की प्राप्ति हुई। बस पैदा हुआ है, अरे भाईयों, सुनातुमने खुशियोंसे घर भर आज मेरी मुराद पूरी हुई है,मेरा गया। सेठ-सेठानी बुदापे का सहारा आ गया है अब मुझे फूले न समाये... कोईकमीनहीं घर-घर ऐसीरोशनी करो मानों दीवालीहो। tim अरी रखून नाचो, खूब गाओ, एखूब खुशियां मनाओ, आज निहाल हो गई, मेरी मनचाही हो गई, मैं पूर्ण सुरवी हो गई। NMEAN ITISH PLEA VE 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ-सेठानी दोनों बड़े प्रसन्न-सोच रहे हैं,लड़का नहीं हुआथा हमबड़े दुखी थे। लड़का हो गया हम सुखी हो गये। में सुखी करने वाला लड़का ही तो अब मैं निहाल हो गई-देवो न कुछ ही वर्षों में हमारा पुत्र बड़ा हो जायेगा, छोटीसी बटुआसी बहू घर में लायेगा, मैं तो उस पर वार-वार कर पानी पिऊँगी। फिर पोता होगा उसकी बालक्रीड़ाओं से हमारा आंगन रिवलखिला उठेगाजन वह मुझे 'अम्मा' कह कर पुकारेगा तोनस क्या कहूँ ? और मेरी भी मत । पूछो-आज मैं सिर उठाकर चल सकता हूँ क्योंकि मेरेपुत्र जो हो गया है-वह मेरे नाम को एसा चमकायेगा किबस नगर में मेरा ही मेरा नाम होगा 3 परन्तु कुछ ही वर्ष बीते थे कि सेठ-सेठानीका भाग्य ऊठ गया। लड़का पंद्रह वर्ष काही हुआ था कि ऐसा बीमार हुआ कि बचने की कोई आशा ही नहीं। एक दिन... हाय ! मैं लुट गई, बरबाद हो गई, क्या-क्या सपने संजोये थे मैने। क्या सब ख़ाक में मिलजायेंगे। नहीं-नहीं कुछ तो करोजी,किसी तरह रोक लो मेरेप्यारे से सलोने से बच्चे को । मत जाने दो, बचा लो इसे।. प्रिये, अब क्या होगा? डाक्टर ने जवाब दे दिया है। बच्चे के बचने की कोई आशा नहीं ON IRDH (रूका 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लड़का बीमार पड़ा है, आरवरी सांसें गिन रहा है, सेठजीव सेठानी उसके पास बैठे है.... बेटा क्या जाने की तैयारी कर रहे हो, क्या मुझसे रूठ गये हो, मेरा पिता जी, मेरा आयु कर्म क्या होगा तुम्हारे बिना समाप्त हुआ चाहता है। अब मुझे जाना ही पड़ेगा। काल मुझे अब हरगिज नहीं छोड़ेगा। तू मेरा लड़का है। पिताजी, आप भूलते बेटा, क्या कहते | पिताजी, यहां कौन किसका मेरा तुझ पर पूर्ण हैं,संसार में कोई हो तुम। तुम तो है? मैं आपका हूँ यही अधिकार है। कौन किसीकानहीं है। मेरा मेरे बुढ़ापे का मान्यता तो आपको दरवी लेजा सकता है तुझे व आपका इतना ही सहारा हो, मेरा कर रही है। मेरे प्रति जो में भी देवताहूँ।मैं सम्बन्ध था। मैं अपनी क्या होगा,कुछ आपका राग है वही तो तुझे नहीं जाने दंगा। मर्जी से आया था,अपनी तो सोचो। मेरे आपकी परेशानी का कारण बिना मेरी मर्जी मर्जी से जा रहा है। आप | तोबस तुम ही है। केतू कैसेजासकता तो क्या,कोईभी मुझे हो। है भला? अब रोक नहीं सकता। "राजा, राणा, छत्रपति, हाधिन के असवार। मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बारदल,बल,देवी,देवता, मात-पिता परिवारामरती बिरियांजीवको,कोई न रावन हार GOO HWCU VI Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसा न कह बेटा तू मेरा मेरा है, था, मेरा रहेगा। पिता जी मैं आपका कैसे हूँ? मैं आपसे द्रव्य से भिन्न, क्षेत्र से भिन्न, काल से भिन्न, भाव से भिन्न हूँ। मेरा रंच भी आपमें नहीं, आपका रंच भी मेरे में नहीं । फिर क्यों व्यर्थ में मुझे अपना मानकर मुझ से राग कर करके दुखी हो रहे हो । तेरे हमारे यहां जन्म लेने से हमें कितना सुख मिला था, हम कह नहीं सकते। मानों नया जीवन ही दिया था तूने । और अब तू जाने की तैयारी कर रहा है, क्या होगा हमारा हम कहीं के भी तो नहीं रहेंगे। हम बड़े दरवी हो जायेगें। रो रो कर प्राण दे देंगे। ? बेटा, तुने मेरी आंखें खोल दी। अब मैं समझ गया कि कोई किसी को सुखी दुखी कर ही नहीं सकता। यदि कोई सुखी "होना चाहता है तो उसे अपने को पहिचानना होगा कि मैं इन सब दिखने वाले स्त्री, पुत्र, धन, मकान आदि से तो भिन्न हूँ ही, मेरे साथ रहने वाले इस शरीर से भी यहां तक कि अपने से होने वाले राग द्वेष आदि विकारों से भी भिन्न हूँ । पिता जी, अच्छा अब मैं जा रहा हूँ । क्षमा करना। 18 FEELER पिता जी, संसार में कोई किसी को सुखी दुखी कर ही नहीं सकता । अपने राग, द्वेष, मोह परिणाम ही दुखी करते हैं। क्या आपने नहीं सुना - "सुख दुख दाता कोई न ऑन, मोह, राग, द्वेष दुख की खान । निजको निज पर को पर जान, फिर दुख का नहीं लेश निंदान॥ और लड़के ने अन्तिम सांस ली। सेठ जी की आंखें खुल चुकी थी, मोह कम हो चुका था, अतः शान्ति से सहन कर सके सब कुछ... आत्मकीर्तन की रचना करके पूज्य वर्णी जी ने बड़ा उपकार किया आज इन पंक्तियों के मर्म को समझ कर ही मैं शान्त बना रहने में समर्थ हो सका हूँ वरना इस आघात को सहन न कर सकने के कारण मैं पागल हो जाता, आत्महत्या भी कर लेता तो. आश्चर्य नहीं। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच अनेक धर्मों के मानने वाले बैठे हैं। चर्चा छिड़ गई कि जिनेन्द्र भगवान की शरण में जाने किसका भगवान बुद्धं शरणं से ही मुक्ति मिलेगी बड़ा है,किसकी गच्छामि'बद्ध है। राम नाम दूसरा न कोई'कृष्ण) 'अरहते शरणं शरण में जाना की शरण में ही ही सत्य ही सब कुछ है पव्वज्जामिय चाहिये...जाने से कल्याण, होगा नहीं,नहीं विष्णु भगवान ही कल्याण करने वाले हैं A सब लड़ने लगे, झगड़ने लगे, एक दूसरे को भला-बुराकहने लगे, इतने में एक महात्माजी वहाँ आ पहुचे... क्यों लडते जैन लोग तो जिनेन्द्र की शरण के (झगड़ते हो भाई,बात क्या है ? अतिरिक्त किसी की भी शरण को ठीक नहीं देवो महात्मन। मानते। आप ही हमारा न्यायकर हम में से कोई बुद्ध दीजिये ना के गीत गाता है,काई विष्णु को अच्छा कहता है,कोईरामको तो कोई हरि को। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भैया,बात किसी की भी गलत नहीं है। सभी तो ठीक कहते हैं। यह भी ठीक हैं, यह भी ठीक हैं। यह कैसे हो सकता है प्रभ। बात तो एक की ही । झगड़ने की कोई हो सकती है। सब की बात बात है ही नहीं। कैसे ठीक है? महत्मा जी ने अपने हाथ में कुछउठाया,और.. ठहरो ठहरो भाई। अभी समझाता हूँ। बताओ मेरे हाथ में क्या है? ये दोनों झूठ हैं | आपके हाथ में तो गेहूँ है। नहीं नहीं कनक गन्दुम ठीक है,कोई बात नहीं। अच्छा भाई, तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिये? यह लो गन्दुम गन्दुम) 4MA EO 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भैया, तुम्हें क्या चाहिये? मुझे तो कनकचाहिये गुरुजी गुरू जी, मुझे तो बस गेहूँ दे अरे तुम क्यों पीछे रह गये, तुम भी तो बताओ तुम्हें क्या चाहिये? तुम लो यह कनक भैया तुमलो यह गेहूँ सन ने देखा, गुरुजी के हाथ में चीज एक ही थी, वही चीज उन्होंने सबको दीपिरन्तु सबखुश हो गये, झगड़ा मिट गया। यह आपने कैसे खुश कर दिया हम सबको? देवो भैया, मेरे हाथ में चीज तो एक ही थी परन्तु तुम उसको अलग अलग नाम दे रहे थे। तब. परन्तु गुरूजी, इस बात का हमारे उस झगड़े से क्या मतलब कि किसका भगवान बड़ा है। इससे हमारेझगड़े का तो निपटारा नहीं होला? Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झगड़ा मिटेगा, अवश्य मिटेगा, मेरे भाइयों जिन,शिव,ईश्वर आदि सब एक आत्मा स्वरुप के ही तो नाम हैं। सब एक सहजशुद्ध आत्मा ही तो हैं। कुछ समझ में नहीं आया गुरूजी कैसे? Tu देखो भैया, जो राग, द्वेष, आदि कषायों को जीते सो जिन ; जो स्वयं सुरव स्वरूप है, सो शिव; जो स्वयं अपनी अवस्थाओं के करने में प्रभुहै सोईश्वर अपनी परिणतियों को बनाये सो ब्रह्मा जो स्वयं में रमे सो राम, जो अपनी ज्ञान क्रियाओं से सर्वत्र व्यापक सो विष्णु; जो सर्व ज्ञाता हो सो बुद्ध; पापों को जिसने दूर कर दिया सोहरि नाम भेद भले ही हो पर वस्तु तो एक ही है ना। YEANOVत XOUT बात तो आपकी ठीक सी हीजंचती है महात्मन । 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाई, फिर क्यों झगड़ते हो व्यर्थ में । ये सब जिसके नाम हैं ऐसे उस आत्म स्वभाव में, पर विषयक रागादि छोड़कर यदि कोई पहुँच जाये, तो फिर उस दशा में आकुलता है ही नहीं । अतः झगड़ा बन्द करो, उस निज धाम को पाने का प्रयत्न करो, तुम स्वयं ही तो भगवान बन जाओगे । फिर सब भक्त गाने लगे. कमाल कर दिया गुरूजी नेआओ सभी मिलकर गायें आत्मकीर्तन की ये पक्तियां... "जिन, शिव, ईश्वर, ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम । राग त्याग पहुँच निज धाम, आकुलता का फिर क्या काम ।।" Mus 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम था उसका कैलाश-बड़ा परेशान-पहुँचामुनिमहाराज के पास. मैं बड़ा दुखी हूँ महाराज, मेरे व्यापार में बराबर घाटा हो रहा है। साल भर पहले मेरा जवान बेटा मरा है, शरीर में भयंकर घर कर गया रोग, क्याकऊँ क्या न करु,कुछसमझ में नहीं आता। सदा परेशान रहता हूँ। कृपया कुछ उपदेशदीजियेगा ताकि मुझे शांति मिले। भैया, मैं क्या उपदेशदूँ। यहां से कुछदूर जयपुर नगर में एक बहुत बड़ा सेठरहता है,नाम है उसका शांतिलाल तुम उसके पास्चले जाओ,वह तुम्हें शांति का उपदेश देंगे। कैलाश पहँचासेठ शांतिलालकी कपड़े की कोठी में और.. हैं! यह क्या! ये है सेठ जी, इतना ठाठ-बाट, नौकर चाकर मुनीमगुमास्ते, लम्बे चौड़े बही खाते, कई कई टेलीफून-इन्हें तो एक मिनट की भी चैन दिखाई नहीं देती। फिर ये क्या उपदेश देगे मुझे। परन्तु फिर भी मुनिराज की आज्ञा तो माननी ही पड़ेगी। MOOTDIA /10000vil 366000000000 शुभलाभ Re 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ जी मुझे महाराज श्री ने आपके पास भेजा है। मैं बड़ा परेशान हूँ। कृपया मुझे कुछ उपदेश दीजिये ताकि मेरे जीवन में कुछ शांति आ सके। भैया, ठीक है। रहोयहां कुछ दिन दो महीने बाद-एक दिन मुनीमजी भागे-भागे आये, और... सेठ जी सेठजी गजब हो गया सेठजी,बम्बई से तार आया है। जिस जहाज से हमारा माल जा रहा था वह जहाज डूब गया है।सारा माल नष्ट हो गया है। दस लाख रूपये का नुकसान-अब क्या होगा? क्या बात है? क्यों घबड़ाये हो? मुनीमजी, कुछ अनहोनी तो नहीं हुई। जाओ अपना कामकरो। 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैलाश ने सब कुछ देखा-भौचक्का सा रह गया बेचारा। परन्तु बोलाकुछ नहीं। वहीं रहते-रहते तीन महीने और बीत गये। फिर एक दिन.... सेठजी, सेठजी मुनीमजीक्या बात है? इतने खुश क्यों? आज तो पौबारे हो गये सेठजी, हमारा भाग्य जाग उठा। अभी बम्बई से तार आया है। जो हमने रुईका सौदा किया था उसमें पन्द्रह लाख रूपये का लाभ हुआ है अहा! हा! हा मजा आ गया। मुनीमजी, कुछ अनहोनी तानहीं हुई। जाओ अपना कामकरो। DO 04 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैलाश फिर भौचक्क-विचारने लगा... बड़े अजीब आदमी है यह सेठजीतो। दसलाव की हानि में माथे में सिकन तक नहीं और पन्द्रहलाख के लाभ में चित्त में प्रसन्नता नहीं। चलू सेठजी ही से पू बात क्या है? annnnnn 0000 उलझन, कैसी उलझन भैया? | कैलाश पहुंच गया सेठ जी के पास... सेठजी, मैं बहुत दिनों से आपके पास रह रहा हूँ परन्तु आपने मुझे एक शब्द भी उपदेश का नहीं कहा। सेठ जी. सीखता तो क्या? याहां तो एक नई उलझनऔर पैदाहो गई दिमागमें भैया,मैं तुम्हें क्या उपदेश देता। हाँ,यह तो बताओ इलने समय से तुम यहां हो,तुमने क्या देखा,यासीरवार 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने आपमें एक अजीब बातदेवी सेठजी! दस लाव की हानि में आपने तनिक विषाद नहीं किया और पन्द्रह लारव के लाभ मेंमानों कुछ हुआ ही नहीं। भैया, तो तुम देखकर भी नहीं समझे। में कुछ करने वाला हूँ ही नहीं |जो होना होता है होता है।वस्तुका परिणमन उसके उपादान से स्वयं ही होता है। पर पदार्थ उसमें निमित्त तो होता है परन्तु कर कुछ नहीं सकता यह तो ठीक है सेठजी! परन्तु नुकसान में रोना आताही है और जब लाभ होता है, खुशी होती भैया कैलाश, यही तो भ्रम है। वस्तु का परिणमन जब स्वयं होता है, उसमें जब मैं कुछ कर ही नहीं सकता, तो फिर उसके अनुकूल व प्रतिकूल परिणमन में सुख दुख क्या? दूसरे के निमित्त से होने वाले राग, द्वेष परिणाम भी आत्मा के नहीं है इस प्रकार का श्रद्धानकरके उन परकृत परिणामों को यदिदर कर दे तो अपने सहजआनन्द-स्वरूप निज स्वभाव में ही बने रहें और शांति ही शांति 28 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो सेठजी दुख सुख का कारण हानिलाम नहीं है, परन्तु में करता हूँ हमारी यह मान्यता ही हमें दुरवी करती है,यही बात ठीक है ना? हाँ बेटा, अब तुम ठीक समझे। AVIN/I1111111 देखो पूज्य सहजानन्द जी महाराज ने आत्म-कीर्तन में भी यही तो कहा है" होता स्वयं जगत परिणाम, में जगका करता क्या काम। दूर हटो परकृत परिणाम, सहजानन्दरहूँ अभिराम।। अब में भली भांति समझ गया सेठजी 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "आत्म कीर्तन" हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता दृष्टा आलमराम ॥टेक।। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह हैं भगवान । अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग वितान ।। मम स्वरूप है सिद्ध समान , अमित शक्ति सुख ज्ञान निधान। किन्तु आश वश रखोयाज्ञान,बना भिरवारी निपट अजान ।। सुख दुख दाताकोईन आन, मोह,राग,द्वेष दुख की खान । निज कोनिज परको पर जान,फिर दुरव का नहीं लेश निदान।। जिन शिव, ईश्वर,ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम। राग त्याग पहुँचू निजधाम,आकुलता का फिर क्या काम ।। होता स्वयं जगत परिणाम , मैंजग का करता क्या काम । दर हटो परकृत परिणाम, सहजानन्द रहूँ अभिराम ।। 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाये जा गीत अपन के मन को सदा ही प्रभु सुमरण में लगा कर उसे आनन्दमय रखना चाहिये। ईश्वर का स्मरण नित्य निरंतर सुख की वृद्धि करता है। चारित्र-निर्माण मनुष्य का प्रधान उद्देश्य है चारित्र निर्माण से अभिप्राय व्यक्ति सद्गुणों के संवर्द्धन और विकास से उत्तम और सुयोग्य नागरिक बनकर अपनी व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ अपने समाज और देश के अभ्युत्थान में पूर्ण रूप से सहयोग देने में समर्थ हो सके। मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि सद्गुणों की प्राप्ति के निमित्त निरन्तर प्रयत्नशील रहकर मनुष्य अपने चारित्रबल को अधिक दृढ़ करे । मनुष्य स्वभावतः ही अनुकरण शील प्रकृति का है वह दूसरों को जैसा करते देखता है स्वयं भी वैसा ही करने लगता है। परम पू० क्षु० मनोहर वर्णी सहजानन्द महाराज के प्रवचनों को डा० मूलचंद जी ने बालकों को सत्ज्ञान कराने हेतु एवं बाल संस्कार हेतु इस पुस्तक का रूप दिया। इस अंक के प्रकाशन में सहयोग श्रीमान धर्मानुरागी श्री सुमेर चंद जी के द्वारा सहजानन्द ग्रन्थ का मैं बहुत ही आभारी हूँ। इस चित्रकथा से सभी आत्मार्थी लाभ लेकर आत्मा की उन्नति करें। ब्र० धर्मचंद शास्त्री ★ सम्पादक - ब्र० धर्मचंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य ★ आलेख - डा० मूलचंद जी मुजफ्फरनगर ★ चित्रकार - बनेसिंह ★ प्रकाशन - आचार्य धर्म श्रुत ग्रन्थ माला जयपुर ★ I.S.B.N. 81-85834-70-9 ★ मूल्य - 10 रुपये ★ प्रकाशन वर्ष - 1996 वर्ष ★ अंक 28 ★ प्रकाशन वर्ष __- जैन मन्दिर गुलाब वाटिका, लोनी रोड, दिल्ली - श्री समेर चंद जैन, 15 प्रेमपुरी, मुजफ्फरनगर Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौ० प्रेमलता पहाड़िया धर्मपत्नि श्री शिखर चन्द पहाड़िया जयहिन्द इस्टेट नं. २-ए, दूसरा मंजिल, भूलेश्वर, बम्बई -2 ( PAHARA) O O PAHARIA SILK MILLS PVT. LTD SHIKHARCHAND AMITKUMAR PAHARIA INDUSTRIES PAHARIA TEXTILES CORPORATION PARAS SILK INDUSTRIES SAPNA SILK MILLS SHIKHARCHAND PREMLATA PAHARIA PAHARIA TEXTILES MILLS PVT. LTD PAHARIA TEXTILES INDUSTRIES PAHARIA UDYOG PAHARIA SYNTHETICS VARUN ENTERPRISES ANAND FABRICS PANCHULAL NIRMALDEVI PAHARIA Kaushal Silk Mills Put. Ltd. FACTORY : 875, KAROLI ROAD, OPP. PAHARIA COMPOUND, BHIWANDI, DIST. THANE. TEL : 34243 22819, 22816 FAX : (02522) 31987 REGD. OFF JAI HIND ESTATE NO. 2-A, 2ND FLOOR, DR. A.M. ROAD BHULESHWAR, BOMBAY- 400 002 TEL : 2089251, 2053085 2050996, FAX : 2080231