SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसा न कह बेटा तू मेरा मेरा है, था, मेरा रहेगा। पिता जी मैं आपका कैसे हूँ? मैं आपसे द्रव्य से भिन्न, क्षेत्र से भिन्न, काल से भिन्न, भाव से भिन्न हूँ। मेरा रंच भी आपमें नहीं, आपका रंच भी मेरे में नहीं । फिर क्यों व्यर्थ में मुझे अपना मानकर मुझ से राग कर करके दुखी हो रहे हो । तेरे हमारे यहां जन्म लेने से हमें कितना सुख मिला था, हम कह नहीं सकते। मानों नया जीवन ही दिया था तूने । और अब तू जाने की तैयारी कर रहा है, क्या होगा हमारा हम कहीं के भी तो नहीं रहेंगे। हम बड़े दरवी हो जायेगें। रो रो कर प्राण दे देंगे। ? बेटा, तुने मेरी आंखें खोल दी। अब मैं समझ गया कि कोई किसी को सुखी दुखी कर ही नहीं सकता। यदि कोई सुखी "होना चाहता है तो उसे अपने को पहिचानना होगा कि मैं इन सब दिखने वाले स्त्री, पुत्र, धन, मकान आदि से तो भिन्न हूँ ही, मेरे साथ रहने वाले इस शरीर से भी यहां तक कि अपने से होने वाले राग द्वेष आदि विकारों से भी भिन्न हूँ । पिता जी, अच्छा अब मैं जा रहा हूँ । क्षमा करना। 18 FEELER पिता जी, संसार में कोई किसी को सुखी दुखी कर ही नहीं सकता । अपने राग, द्वेष, मोह परिणाम ही दुखी करते हैं। क्या आपने नहीं सुना - "सुख दुख दाता कोई न ऑन, मोह, राग, द्वेष दुख की खान । निजको निज पर को पर जान, फिर दुख का नहीं लेश निंदान॥ और लड़के ने अन्तिम सांस ली। सेठ जी की आंखें खुल चुकी थी, मोह कम हो चुका था, अतः शान्ति से सहन कर सके सब कुछ... आत्मकीर्तन की रचना करके पूज्य वर्णी जी ने बड़ा उपकार किया आज इन पंक्तियों के मर्म को समझ कर ही मैं शान्त बना रहने में समर्थ हो सका हूँ वरना इस आघात को सहन न कर सकने के कारण मैं पागल हो जाता, आत्महत्या भी कर लेता तो. आश्चर्य नहीं।
SR No.033225
Book TitleGaye Ja Geet Apan Ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy