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ग्राहक दाम लेकर चला गया। सेठ प्रकाश चंद बैठे सब कुछ | देख रहे थे।
बोले
...
कैसे
भैया ? समझ
में नहीं
आया।
मित्र, बात कुछ समझ में नहीं आई मिले हुए सोने व खोट में तुमने सोने का वजन कैसे जान लिया ?
भैया यह बताओ जब तुम्हारी फैक्टरी जल गई थी तो तुमने कहा था ना कि मैं नष्ट हो गया, जब तुम्हारा लड़का मरा, तुम रो रो कर कह रहे थेना कि मैं मर गया और परसों जब तुम नया कुरता पहन कर आये थे तो तुमने कहा था ना कि दर्जी ने मेरा नाश कर दिया क्योंकि जरा ठीक नहीं
कुरता
बना था ?
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हाँ, कहा तो था, परन्तु, इससे
क्या ?
बस भैया, यही तो दृष्टि की करामात है। तुम भी यदि अपने को ऐसी ही पैनी
दृष्टि का प्रयोग करके देखो तो तुम्हें दुखों से मुक्ति मिल जायेगी
भैया तुम केवल अपने को यानि "मैं" को देखो फिर तुम जान जाओगे कि ये सब पदार्थ मकान, धन, स्त्री, पुत्र आदि तुम हो ही नहीं, फिर क्यों इन्हें अपने से चिपकाये हुए हो ?
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